यशोश्वरी माँ का कवित्त

।।कवित्त।।
दुष्टन संहार कर संतन रुखार कर,
साद आद समै हूं से कष्ट सब टाल़िका।
भक्तन के भाव भाल़ जग के जंजाल जाल़,
प्रसन्न प्रसून आ पहन कंठ माल़िका।
यश को विस्तार देय कुयश को गार देय,
यशोश्वरी मेरी मात भाव दास भाल़िका।
चंडिका तुम्हारी आभ झंडी ओ सिंदूरी वर्ण,
कीरती अक्षुण्ण रहे शूल़पांणि काल़िका।।[…]