आवड मां रा रास रमण रे भाव रा दुरमिल सवैया

।।दोहा।।
माडेची उछरंग मंडै, सझि पोशाक सुढाळ।
बोलत सह जय जय विमळ, बाजत राग विशाळ॥ 1 ॥

।।छंद – दुरमिला।।
बहु राग बिलावल बाजहि विम्मळ राग सु प्रघ्घळ वेणु बजै।
मिरदंग त्रमागळ भेरिय भूंगळ गोमस सब्बळ वोम गजै।
बहु थाट बळोबळ होय हळोबळ धुजि सको यळ पाय धमै।
शिणगार सझै मुख हास सुशोभित रास गिरव्वर राय रमै॥ 1 ॥

घण बज्जत घुंघर पाय अपंपर लाखूं ही दद्दर पाय लजै।
घण मंडळ घूघर बास पटंबर बोलत अम्मर मोद बिजै।
अति बासव अंतर धूजि धरा जोगण जब्बर खेल जमै।
शिणगार सझै मुख हास सुशोभित रास गिरव्वर राय रमै॥ 2॥[…]

» Read more

आवड माता री स्तुति – अनोपजी वीठू

।।छंद हरिगीत (सारसी)।।
गणेश गणपत दीजिये गत उकत सुरसत उजळी।
वरणंत मैं अत कीरति व्रत शगत सूरत संव्वळी।
वा वीश हथसूं दिये बरकत टाळे हरकत तावडा।
भगवान सुरज करे भगति आद शगति आवडा।।1।।

मामड चारण दुःख मारण सुख कारण संमरी।
दिव्य देह धारण कीध डारण तरण तारण अवतरी।
समर्यां पधारण काज सारण धन वधारण धावडा।
भगवान सुरज करे भगति आद शगति आवडा।।2।।[…]

» Read more

प्रस्तावना

राजस्थान री धरा सूरां पूरां री धरा। इण धरा रे माथे संत, सती, सूरमा, सुकवि अर साहुकारां री ठावकी परंपरा रेयी है। जग रे पांण राजस्थान आखै मुलक में मांण पावतो अर सुजस लेवतो रेयौ है। डॉ शक्तिदान जी कविया रे आखरां में-

संत, सती अर सूरमा, सुकवि साहूकार।
पांच रतन मरूप्रांत रा, सोभा सब संसार।।

इण मरू रतनां रे सुजस री सोरम संचरावण वाळौ अठेरो साहित पण सजोरो। शक्ति, भक्ति अर प्रकृति रो त्रिवेणी संगम। शक्ति जाति वीरता रो वरणाव वंदनीय तो प्रकृति सूं प्रेम पढण वाळै नें हेम करे जेडौ तो इणी गत भक्ति काव्य भक्त ह्रदय सूं निकळण बाळी गंगधार। इणी गंग धार में नहाय आपरे जीवण रो सुधार करण रा जतन करणिया अठे रा कवेसर पूरै वतन में निकेवळी ओळखाण राखै। भक्ति काव्य री परंपरा घणी जूनी अर जुगादि। राम भक्ति काव्य कृष्ण भक्ति काव्य रे साथै साथै अठै तीसरी भक्ति धारा ई संपोषित ह्वी अर समान वेग सूं चाली। अर बा है देवी भक्ति काव्य धारा।[…]

» Read more

माँ श्री आवड़जी रा छन्द – कवि मेहाजी

।।छन्द-नाराच।।
अम्बा ईच्छा अलख की झलक दुख झाळणे।
मांमट देव के ऊभट प्रेह प्रगटी पाळणे।
सप्त बैन सुख चैन भैरू लेन भावड़ा।
भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१!!

तुंही भगत तारणी ऊबारणीलसुरां असी।
जणीह मात चारणी जगत में तेरे जसी।
सकत को संसार करत नाकड़ा नमावड़ा।
भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२!![…]

» Read more

आवडजी महाराज रा नाराच छंद – मानदानजी कविया दीपपुरा, सीकर

॥छंद नाराच॥
बिमाण बैठ सात भाण आसमांण उत्तरी।
धिनो अछी छछी ज होल गैल लूंग लंगरी।
सुधाम धाम मांमडा जु धीव तूं कहावडा।
नमो ज मात बीस हाथ पात पाळ आवडा॥1॥

कलू असाधि की उपाधि व्याधि भोम पै छई।
सरूप हिंगळाज रो अनूप आवडा भई।
अखंड मंड तेमडै प्रचंड छत्र छाबडा।
नमो ज मात बीस हाथ पात पाळ आवडा॥2॥[…]

» Read more

आवड मां रो रेणकी छंद – कवि केसरजी खिडीया

॥छंद: रेणकी॥
गहकत तर बिम्मर दादर सुर सहकत,
सगत नजर भर अठ तसणी।
झळहऴ कुंडळ उज्जळ मिळ झूलर,
दूठ निजर दामण दमणी।
मिळिया दळ सबळ तैमडै माथै
शगत नवै लख हेक समै।
झबकत कर चूड झणणणणण झांझर
रामत डुँगरराय रमै॥ 1 ॥[…]

» Read more

महर कर मामड़जा माई – कविवर श्री शुभकरण जी देवल

अरज म्हारी साँभल़जो आई, महर कर मामड़जा माई।टेर।

जिण पुल़ बीच जवन जुलमाँ सूँ अघ बधियो अणपार।
महि अघ हरण सदन मामड़ रै आवड़ लिय अवतार।
सगत नित भगताँ सुखदाई।1।[…]

» Read more

जय तेमड़ेराय – चिरजा – कवि सोहनदान जी सिढायच

तेमडाराय
भाकरीयो मन भावणो ,जठे आवङ माँ रो थान रे |
जठे आई माँ रो धाम रे, ङुगरीयो रलियावणो ||

ऊँचे ङुगर ओर लो ज्यारी धजा उङे असमान रे |
जोत जगामग जगमगे माँ रा नामी धूरत निशान रे ||1||
ङुगरियो रलियावणो………..

» Read more

तारा स्वरूपा आवड वंदना

।।शार्दूलवीक्रिडीत छंद।।
अंबा नीलसरस्वती त्रिनयनी, वन्दे शम्शानी परा।।
कैची खप्परणी विशाल खडगा, नीलांम्बुजं धारिणी।
कंठे हार भुजंग व्याल वलया,तन्वी जया तारिणी।
श्रीमद्एकजटाशिरा नमन मां,श्यामा तनु आवडा॥1

ऐं ह्रीं श्रीं शुभ क्लीं हुं उग्र तरला, कापालिका मंगला।
कंकाली नरमुंडमाल धरिणी, शक्ति स्वरूपा भवा।
वामाखेपवशिष्ठ आदिजननीं, हुंकारिणी,चित्परा।
तारा वंदन कालहंती वरदा, मां आवडा शारदा॥2[…]

» Read more

काली रूप आवड वंदना

छंद सारसी
क्रां भद्रकाळी, क्रीं कृपाळी, क्रूं कराली, कालिका।
मां मुण्डमाळी, डं डमाली, वपु विशाळी, ज्वालिका।
जय जगतपाली, वृद्ध बाली वेश भाळी मावडा।
काली कराली, वदन वाली, अस्थिमाली, आवडा॥1
समसान वासी, अट्टहासी, वपुअमासी, कज्जला।
प्रति पल पिपासी, पुंज राशी, भव्य भासी, चप्पला॥
मेटो उदासी, हिये वासी, फँस्यौ फासी, डावडा।
काली कराली, वदन वाळी, अस्थि माळी, आवडा॥2 […]

» Read more
1 2 3 4