खूबड़जी री स्तुति – गंगारामजी बोगसा

डिंगल कवियों की यह उदारता भी रही है कि अपने मित्रों, हितेषियों व संबंधियों के आग्रह पर ये उन्हीं के नाम से भी रचनाएं लिख देते थे। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण मिलते हैं। बाद में मूल कवि के स्थान पर उस कवि का नाम चल पड़ता है जिसके नाम से मूल कवि ने रचना बनाई।
ऐसा ही एक उदाहरण आज गंगारामजी बोगसा सरवड़ी की कुछ पांडुलिपियां पढ़ते हुए मिला। गंगारामजी ने किन्हीं ठाकुर सरदारसिंहजी के नित्य पाठ हेतु मा खूबड़ी की स्तुति लिखकर दी थी।[…]
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