यह गरल है जो पच नहीं सकता!

…जब हम हमारे मध्यकालीन इतिहास के धुंधले पृष्ठों को पलटते हैं तो उन पर ऐसी-ऐसी आभामंडित कहानियां अंकित है जिन्हें पढ़कर हमारे मनोमस्तिष्क में उन हुतात्माओं के त्याग, महानता तथा क्षमाशीलता के सुभग भावों की अमिट छाप स्वतः ही छप जाती है। क्षमा वीरस्य भूषणम् की उक्ति इनके चारू चरित्र की सहगामिनी परिलक्षित होती है।
ऐसी ही एक घटना से आपको परिचित करवा रहा हूं।
कच्छ धरा में एक गांव है मोरझर। मोरझर पुराना सांसण। यहां सुरताणिया चारण रहते हैं।[…]
» Read more