यह गरल है जो पच नहीं सकता!

…जब हम हमारे मध्यकालीन इतिहास के धुंधले पृष्ठों को पलटते हैं तो उन पर ऐसी-ऐसी आभामंडित कहानियां अंकित है जिन्हें पढ़कर हमारे मनोमस्तिष्क में उन हुतात्माओं के त्याग, महानता तथा क्षमाशीलता के सुभग भावों की अमिट छाप स्वतः ही छप जाती है। क्षमा वीरस्य भूषणम् की उक्ति इनके चारू चरित्र की सहगामिनी परिलक्षित होती है।

ऐसी ही एक घटना से आपको परिचित करवा रहा हूं।

कच्छ धरा में एक गांव है मोरझर। मोरझर पुराना सांसण। यहां सुरताणिया चारण रहते हैं।[…]

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ભગવતી આઈ શ્રી વાનુમા – મોરઝર (भगवती आई श्री वानुमा मोरझर)

માતૃપૂજાની શરૂઆત તો સૃષ્ટિના પ્રારંભ સાથે જ થઈ હશે. ભારતમાં તો આદિકાળથી જ માતૃપૂજા થતી આવી છે.

વેદોમાં પણ જગદંબાને સર્વદેવોના અધિષ્ઠાત્રી, આધાર સ્વરૂપ સર્વને ધારણ કરનારા સચ્ચિદાનંદમયી શક્તિ સ્વરૂપે વર્ણવામાં આવ્યા છે.

લોકજીવનમાં પરંપરાગત શક્તિ-પૂજા સાથે ચારણો ના ઘેર જન્મ લેનાર શક્તિ અવતારોની પૂજાનું પણ વિશિષ્ટ અને મહત્ત્વપૂર્ણ સ્થાન છે.[…]

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चारणां रो रगत पचैला नीं!

कच्छ धरा में एक गांम है मोरझर। मोरझर जूनो सांसण। अठै सुरताणिया चारण रैवै।

ऐ सुरताणिया पैला पाधरड़ी गांम में रैवता। किणी बात माथै उठै रै ठाकुर राजाजी वाघेला सूं अणबण हुयगी अर ऐ आपरो माल-मवेशी लेय गांम सूं निकल़ग्या। मोरझर पासै आया तो इणां नै आ धरा आपरै बसणजोग लागी। घणो झूंसरो, प्रघल़ो पाणी। लीला लेर अर घेर घुमेर रूंखां री जाडी छाया देख इणां आपरो नेस अठै थापियो।

इण सुरताणिया परिवार रा मुख्या जगोजी हा। वै बोलता पुरस, डील रा डारण अर दीखत रा डकरेल हा। मोरझर री धरा लाखाड़ी री सीमा में पड़ती सो जगाजी रो ऐड़ो व्यक्तित्व देख’र उठै रा ठाकुर देवाजी इणां नै सदैव रै सारू इनायत करदी। जगाजी रै साथै ई इणां रा मोटा भाई भाखरसी ई रैता। इणी भाखरसी रै एक बेटे रो नाम हो महकरणजी।

महकरणजी रो ब्याव वावड़ी गांम रा झीबा खोड़ीदान री बेटी वानूं रै साथै हुयो।[…]

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