चमत्कार, पुरस्कार और अभिलेख के धनी: ईसरदास रोहड़िया

चारण महात्मा ईसरदास रोहड़िया (वि. सं. 1515 से वि. सं. 1622) को राजस्थान और गुजरात में भक्त कवि के रूप में आदरणीय स्थान प्राप्त है। उनकी साहित्यिक संपदा गुजरात और राजस्थान की संयुक्त धरोहर है। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया यथार्थ रूप में कहते हैं कि-‘हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में जो स्थान गोस्वामी तुलसीदास और कृष्णभक्त कवि सूरदास का है वही स्थान गुजरात, राजस्थान, सौराष्ट्र, सिन्ध, धाट और थरपारकर में भक्तवर ईसरदास का है।’1 भक्त कवि ईसरदास ने उम्रभर भक्ति के विरल स्वानुभवों और धर्मग्रंथों से प्राप्त ज्ञान का सुंदर समन्वय अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है। मगर यहाँ ईसरदास रोहड़िया के जीवन में हुए चमत्कारों, पुरस्कारों और शिलालेखों के संदर्भ में ही बातें करनी अभीष्ट है।[…]
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