वरसाळे रा छंद – मतवाळ घुरै मुधरो मुधरो – अळसीदान जी रतनू (बारहट का गाँव, जैसलमेर)

॥छंद त्रोटक॥
रुक वाव सियारिय बोल रही।
मतवाल उगो किरणाळ मही।
सुरंगो नभ सोसनिया सबही।
जळ धार अपार भया जबही।
धुरवा सुभराट चढै सखरो।
मतवाळ घुरै मुधरो मुधरो।।1।।[…]

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‘थळवट बत्तीसी’ बनाम ‘थळवट रौ थाट’ – कविराजा बांकीदास आशिया / डॉ. शक्तिदान कविया

थळवट बत्तीसी (बांकीदास आशिया)
जेथ वसै भूतां जिसा, मानव विना मुआंह।
ढोल ढमंकै नीसरै, पांणी अंध कुआंह।।
थळवट रौ थाट (शक्तिदान कविया)
थळ रा वासी थेट सूं, हरी उपासी होय।
अष्ट पौर तन आपरै, कष्ट गिणै नंह कोय।।[…]

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अड़वाँ नैं ओळमा

हा रूप रूपळा रूंख रूंख री, डाळी डाळी हेत भरी।
हो हरियो भरियो बाग बाग में, बेल लतावां ही पसरी।
खिलता हा जिणमें फूल, फूल वै रंग रंग रा रळियाणां।
पानां पानां पर पंछीडा, मंडराता रहता मन भाणां।
बो बाग दिनो दिन उजड़ै है, सो कहो कठै फ़रियाद करां।
(म्हे) लिखां ओळमा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां।।[…]

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पुस्तक समीक्षा – प्रकृति-संस्कृति री ओपती सुकृति-‘रूंख रसायण’ – महेन्द्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’

पुस्तक समीक्षा – प्रकृति-संस्कृति री ओपती सुकृति-‘रूंख रसायण’ – महेन्द्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’
लेखक – डॉ. शक्तिदान कविया

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घनघोर घटा, चंहु ओर चढी – कवि मोहन सिंह रतनू

।।छंद – त्रोटक।।
घनघोर घटा, चंहु ओर चढी, चितचोर बहार समीर चले।
महि मोर महीन झिंगोर करे, हरठोर वृक्षान की डार हले।
जद जोर पपिहे की लोर लगी, मन होय विभोर हियो प्रघले।
बन ओर किता खग ढोर नचै, सुनि शोर के मोहन जी बहलै।[…]

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सुरराज आरजी सुणै साहिब!

।।छंद-गयामालती।।
काढियो मुरधर काल़ कूटै,
एक थारी आस में।
इण झांख साम्हीं आंख काढी,
बात रै विसवास में।
ओ बीतियो ऊनाल़ इणविध,
छांट हेकन छेकड़ी।
सुरपाल़ अरजी सुणै साहिब,
पूर गरजी आ पड़ी।।1[…]

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मेट आरत मेह कर

।।छंद – सारसी।।
बरखा बिछोही शुष्क रोही,
और वोही इण समैं।
मघवा निमोही बण बटोही,
हीय मोही लख हमैं।
बलमा बिसारी धण दुखारी,
जीव भारी कष्टकर।
पत राख सुरपत दर बिसर मत,
मेट आरत मेह कर।
जिय देर मत कर मेह कर।[…]

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इंदर नै ओल़भै रो एक गीत

इतरो अनियाव मती कर इंदर,
डकरां ऐह नको रच दाव।
किथियै जल़ थल़ एकण कीधा,
सुरपत किथियै सूको साव।।1

जल़ बिन मिनख मरै धर जोवो,
सब फसल़ां गी सांप्रत सूक।
उथिये छांट नखी नह एको,
कानां नाय सुणी तैं कूक।।2[…]

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मत किम चूको मोर?

थल़ सूकी थिर नह रह्यो, चित थारो चितचोर।
लीलां तर दिस लोभिया, मन्न करै ग्यो मोर।।1

लूवां वाल़ै लपरकां, निजपण तजियो नाह।
धोरां मँझ तज सायधण, रुगट गयो किण राह।।2

झांख अराड़ी भोम जिण, आंख खुलै नीं और।
वेल़ा उण मँझ वालमा, मोह तज्यो तैं मोर।।3

वनड़ी तज थल़ वाटड़ी, अंतस करा अकाज।
बता कियो तैं वालमा, की परदेसां काज।।4[…]

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वाह तरव्वर वाह

लालच ना जस लैण रो, चित न बडाई चाह।
आये नै दे आसरो, वाह तरव्वर वाह।।1

गहडंबर फाबै गजब, रल़ियाणो मझ राह।।
पथिक रुकै परगल़, छिंयां, वाह तरव्वर वाह।।2

विहँग सीस वींटा करै, उर ना भरणो आह।
दंडै नीं राखै दया, वाह तरव्वर वाह।।3

फूल तोड़ फल़ तोड़णा, पुनि सथ तोड़ पनाह।
उण पँछिया नै प्रीत दे, वाह तरव्वर वाह।।4[…]

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