हे डोकरड़ी! माफ करीजै!

हे मायड़भासा!
सुंदर सरूपी
तरूणी बाल़ा
लड़ाझूम गैणां सूं
सजधज
सहनशीलता
भाव गहनता
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आंधियां अटारी
खैंखाट करती
आवती
वैर साजण
मुरधरा सूं
गैंतूल़ लेयर धूड़ रा।
अर धूड़ जिण तो
आंखियां
हर एक री
भर दिया रावड़
दीवी कावड़[…]
संसार की किसी भी भाषा की समृद्धता उसके शब्दकोष और अधिकाधिक संख्या मे पर्यायवाची शब्दो का होना ही उसकी प्रामाणिकता का पुष्ट प्रमाण होता है। राजस्थानी भाषा का शब्दकोष संसार की सभी भाषाओं से बड़ा व समृद्धशाली बताया जाता है। राजस्थानी में ऐक ऐक शब्दो के अनेकत्तम पर्यायवाची शब्द पाये जाते है, उदाहरण स्वरूप कुछेक बानगी आप के अवलोकनार्थ सेवा में प्रस्तुत है।
।।छप्पय।।
।।ऊंट के पर्यायवाची।।
गिडंग ऊंट गघराव जमीकरवत जाखोड़ो।
फीणानांखतो फबत प्रचंड पांगऴ लोहतोड़ो।
अणियाऴा उमदा आखांरातंबर आछी।
पीडाढाऴ प्रचंड करह जोड़रा काछी।[…]
जग में चावो जोधपुर, भल चमकंतो भाण।
अड़ियो जाय अकास सूं, जंगी गढ जोधांण।।११
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जाहर गढ जोधांण रो, हाड अकूणी हेर।
सदा निशंको सांप्रत, बंको बीकानेर।।14[…]
संस्कृति वह आधारशिला है जिसके आश्रय से जाति, समाज एवं देष का विशाल भव्य प्रासाद निर्मित होता है। निरंतर प्रगतिशील मानव-जीवन प्रकृति तथा समाज के जिन-जिन असंख्य प्रभावों एवं संस्कारों से प्रभावित होता रहता है, उन सबके सामूहिक रूप को हम संस्कृति कहते हैं। मानव का प्रत्येक विचार तथा प्रत्येक कृति संस्कृति नहीं है पर जिन कार्यों से किसी देष विशेष के समक्ष समाज पर कोई अमिट छाप पड़े, वही स्थाई प्रभाव संस्कृति है।[…]
» Read moreरंग बिऱंगी धरा सुरंगी, जंगी है नर-नार जठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।
रण हाट मंडी हर आंगणियै, कण-कण में जौहर रचिया है।
पल़की बै ताती तरवारां, भड़ वीरभद्र सा नचिया है।
वचनां पर दैवण प्राण सदा, जुग-जुग सूं रैयी रीत अठै।
रल़ियाणो राजस्थान जठै।।1[…]
माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा तीनों का स्थान अति महनीय है क्योंकि ये तीनों हमें आकार, आधार एवं अस्तित्व प्रदान करती हैं। माँ तथा मातृभूमि की तरह ही मातृभाषा की महत्ता निर्विवाद है। संस्कृति के सहज स्रोत के रूप में वहां की भाषा की भूमिका प्रमुख होती है। यह अटल सत्य है कि मातृभाषा ही वह सहज साधन-स्रोत है, जो मनुष्य के चेतन एवं अचेतन से अहर्निश जुड़ी रहती है। यही कारण है जैसे ही किसी समाज या समूह का अपनी मायड़भाषा से संबंध विच्छेद होता है, वैसे ही उस समाज एवं समूह के चिंतन की मौलिकता नष्ट हो जाती है।[…]
» Read moreजिण भोम उपजे भीम सा भट, थपट भूमंड थरथडै।
धड शीश पडियो लडे कमधज, झुण्ड रिपुदल कर झडे।।
जुध काज मंगल गिणत जोधा, वीरवर विसवासरा।
प्रचंड भारत दैश प्रबल, धवल उजवल मरुधरा।।[…]
ऊंचो तो आडावल़ो, नीचा खेत निवांण।
कोयलियां गहकां करै, अइयो धर गोढांण।।
उदियापुर लंजो सहर, मांणस घण मोलाह।
दे झोला पाणी भरे, रंग रे पीछोलाह।।
गिर ऊंचा ऊंचा गढा, ऊंचा जस अप्रमाण।
मांझी धर मेवाड. रा, नर खटरा निरखांण।।
जल ऊंडा थल ऊजला, नारी नवले वेस।
पुरख पटाधर नीपजै, अइयो मुरधर देस।।[…]
हे मायड़ भाषा! माफ करजै!
म्हे थारै सारू
कीं नीं कर सकिया!
फगत लोगां रो
मूंडो ताकण
उवांरी थल़कणां
धोक लगावण रै टाल़!
थारै नाम माथै
रमता रैया हां[…]