मेहाई सतसई – नरपत आसिया “वैतालिक”

मेहाई सतसई

कवि नरपत आसिया “वैतालिक” कृत

अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारे आंगणैं, मेहाई महराज॥
(शब्द रूपी अमर बकरा हे माँ आई मेहाई महराज आपरा मढ रे आंगण में रमता मेल रियो हूँ।)

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बीसहथ रा सोरठा

आगल़ किण आईह, मन चिंता राखूं मुदै।
म्हारी महमाईह, बणजै मदती बीसहथ।।1
कुलल़ो अनै करूर, समै बहै संसार में।
जोगण आव जरूर, बण मदती तूं बीसहथ।।2
करनी तूं करसीह, मोड़ो इणविध मावड़ी।
सुकव्यां किम सरसीह, बिगड़्या कारज बीसहथ।।3

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जगमाल के सवैया

मित्र जगमाल सिंह बालुदान जी सुरताणिया को संबोधित संबोधन काव्य

पल़ बीत रही पल ही पल में अब आल़स चारण तू तजरे|
मत सोच करे मन में सुण बांधव है मथ हेक रदं गज रे।
प्रिय मोदक ,पुत्र शिवा ,वरदायक तू गण नायक नें भजरे|
जगमाल !सहायक मूषक वाहक,चारभुजायक तौ कज रे||१ […]

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मायड भाषा ने मिळै

मायड भासा ने मिळे, राज मानता राज।
औ अरजी है आप नें, मेहाई महराज।।७२१
डिंगळ डिगती डोकरी, थां बैठां किण काज।
मायड दीजो मानता, मेहाई महराज।।७२२
डिंगळ री डणकार रा, बोल्या सब कविराज।
मायड दीजो मानता, मेहाई महराज।।७२३
डिंगळ डिगती डोकरी, थारै हाथां लाज।
मायड दीजो मानता, मेहाई महराज।।७२४[…]

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दसमहाविधामयी मेहाई वंदना

धारी सिर जिण धाबळी, कंकण वळे करां ज।
झणण पद शुभ झांझरां, मेहाई महराज।।६८५
माळा फेरत मावडी, मढ बैठ’र रिधुराज।
रात दिवस हिरदै बसो, मेहाई महराज।।६८६
सिंदुर चरचित भाळ शुभ, हेम हार गळ राज।
मालक मां देशांणमढ, मेहाई महराज।।६८७
काळी प्हैरी कांचळी, बिछिया पग रिधु राज।
कर त्रिशूळ किनियांण रे, मेहाई महराज।।६८८[…]

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भुवनेशी कात्यायनी स्तुति का भावानुवाद

भुवनेशी कतियांण री, कविता कथवा काज।
आखर दीजो ओपता, मेहाई महराज।।६३३
भजां मात भुवनेश्वरी, मुकुट चन्द्र सुभ साज।
तनें नमन मां त्रंबका, मेहाई महराज।।६३४
मंद मंद मुख हास ;कर, पाशांकुश वरदा ज।
अभयप्रदा, सोहत उमा, मेहाई महराज।।६३५
देव तवन नित दाखता, गद गद कँठ सूं राज।
किनियाणी करूणाकरा, मेहाई महराज।।६३६[…]

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बाळ जाण माँ बगसजे

काढो शुभ कादंबरी, करणी मां रे काज।
आरोगेला ईसरी, मेहाई महराज।।६२२
सरल मनां सुणजे सगत, गरल घणो मन म्हां ज।
बाळ जाण बगसो भवा, मेहाई महराज।।६२३
सदा ह्रदय सरसावजे, स्नेह सुधा सरिता ज।
अवगाहण मिस आवडा, मेहाई महराज।।६२४
किनियांणी कोटिक गुनां, रोज करूं रिधु राज।
बाळ जांण मां बगसजै, मेहाई महराज।।६२५[…]

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शक्रादय स्तुति का भावानुवाद

स्तुति शक्रादय री सरस, कविता कीरत राज।
मांड रह्यो सुण मावडी, मेहाई महराज।।५५२
अरिकुलभयदा अंबिका, क्रोधित नयणां मां ज।
जया रूप जोगण जबर, मेहाई महराज।।५५३
काळी कांठळ सम कहूं, सिर अध ससि जिण साज।
जया रूप माता जयो, मेहाई महराज।।५५४
कर मँह शंख कृपाण जिण, चक्र त्रशूळां साज।
जया रूप जोगण जबर, मेहाई महराज।।५५५[…]

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देवीअथर्वशीर्षम् का भावानुवाद

आखर अथर्व शीर्ष रा, देवी दाखूं आज।
उकती दीजो अंबिका, मेहाई महराज।।४५६
सकल देव सुरलोक रा, कहियो करणी मां ज।
कहो आप किनियांण कुण, मेहाई महराज?।।४५७
पुरूख प्रकृति पुहमि पर, जगत चराचर म्हां ज।
शुन अशुन्न सब हीज हूं, मेहाई महराज।।४५८
मात वदी निज मुख मधुर, आखर शुभ रिधु राज।
ब्रह्मरूप हूं भगवती, मेहाई महराज।।४५९[…]

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आखर आखर आप रा

रचना म्हारी री रिधू, लोवडधर रख लाज।
आखर आखर आप रा, मेहाई महराज।।४४८
रचना सुध मन सूं रची, आखर थारी आ ज।
म्हारी हूं कह किम कहूं, मेहाई महराज।।४४९
सकळ जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर है खरा, मेहाई महराज।।४५०
सकल जगत है स्वारथी, जूठा सभी सगा ज।
आखर आखर आख ले, मेहाई महराज।।४५१[…]

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