नीतिपरक सवैया

सठ बेच बजारन हीरन को,
मन मोल कथीर करावत है।
अस के बदले मुढ रासभ ले,
निज भाग अथाग सरावत है।
तड गंग सुचंग सों नीर तजै,
धस कीचड़ अंग पखारत है।
कवि गीध अमोलख मानव जीवन,
झेडर झुंड गमावत है।।[…]

» Read more

भगत माला रा सवेया – कवि रिड़मलदाँन बारहठ (भियाड़)

।।सवैया।।
नाँम जप्यो ध्रुव बालक नैम सु तात उताँन नही बतलायो।
लागिय धूँन अलँख धणी लग नारद मूनिय मँत्र सुणायो।
आद गुगो जुग ऐक अखँडज आसण ध्रूव अडिग थपायो।
राँम जपो नित नाँम रिड़ँमल सँतन को हरि काज सरायो।
ईस्वर सँकट मैटण आयो।।१[…]

» Read more

खोटे सन्तां रो खुलासो – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।दोहा।।
बांम बांम बकता बहै, दांम दांम चित देत।
गांम गांम नांखै गिंडक, रांम नांम में रेत।।1।।

।।छप्पय।।
अै मिळतांई अेंठ, झूंठ परसाद झिलावै।
कुळ में घाले कळह, माजनौ धूड़ मिलावै।
कहै बडेरां कुत्ता, देव करणी नें दाखण।
ऊठ सँवेरे अधम, मोड चर जावै माखण।
मुख रांम रांम करज्यो मती, म्हांरो कह्यो न मेटज्यो।
चारणां वरण साधां चरण, भूल कदे मत भेटज्यो।।2।।[…]

» Read more

डफोळाष्टक डूंडी – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।डफोळाष्टक-डूंडी।।
(सवैया)
ऊसर भूमि कृसान चहै अन, तार मिलै नहिं ता तन तांई।
नारि नपुंसक सों निसि में निज, नेह करै रतिदान तौ नांई।
मूरख सूम डफोलन के मुख, काव्य कपोल कथा जग कांई।
वाजति रै तो कहा वित लै बस, भैंस के अग्र मृदंग भलांई।।1।।[…]

» Read more

गजेन्द्र मोक्ष पर समान बाई का सवैया

पान के काज गयो गजराज,
कुटुम्ब समेत धस्यो जल मांहीं।
पान कर्यो जल शीतल को,
असनान की केलि रचितिहि ठाहीं।
कोपि के ग्राह ग्रह्यो गजराज,
बुडाय लयो जल दीन की नांहीं।
जो भर सूँड रही जल पै तिहिं,
बेर पुकार करि हरि पाहीं।।[…]

» Read more

समानबाई के सवैया

करसै है कमान अहेरिय कान लौं,
बान तैं प्रान निकालन में हैं।
दरसै गुस्सै भर्यो स्वान घुसै,
झुरसै तन तो जगि ज्वालन में हैं।
तरसै दृग नग पै ढिग तो,
मृगी लगी लौ लघु लालन में हैं।
बरसै अँखियां दुखियाँ अति मो,
सरसै सुख स्वामि सम्हालन में हैं।।[…]

» Read more

डिंगल़ वाणी में भगवती इंद्र बाई

माँ भगवती लीलाविहारिणी इन्द्रकुँवरी बाईसा का जन्म संवत १९६४ में हुआ था उनके भक्त कवि हिंगऴाजदानजी जागावत ने अवतरण की ऐक प्रसिध्द रचना चिरजा सृजित की है जिसमें विक्रम संवत १९६३ के आश्विन नवरात्रो में माँ हिंगऴाज के स्थान पर सभी देवियों की पार्षद भैरव सहित परिषद लगती है, उस परिषद में भैरव माँ को ज्ञापित करते हैं कि मरूधर देश में अवतार की आवश्कता है, भगवती हिंगऴाज अपनी अनुचरी आवड़ माँ को आदेश देकर सही स्थानादि बताकर मरूधरा में अवतार के लिए प्रेरित करती है व भगवती आवड़ अवतरित हो भक्तवत्सला बनती है अद्भूत कल्पना व शब्दों का संयोजन है रचना में यथाः…..

।।दोहा।।
सम्वत उन्नीसै त्रैसट्यां, साणिकपुर सामान।
शुक्ल पक्ष आसोज में, श्री हिंगऴाज सुथान।।

इसके ठीक नवमास बाद आषाढ शुक्ला नवमी को भगवती का अवतरण निर्दिष्ट स्थान पर हो जाने के बाद विभिन्न कवेसरों ने सहज सुन्दर व सरस सटीक वर्णन किया है यथा कुछ दृष्टान्त:[…]

» Read more

🌺शब्दालंकार सवैया – ब्रह्मानंद स्वामी🌺

या मगरी मग री तगरी, नगरी न गरी सगरी बगरी हे;
वाट परी डगरी डगरी, खगरी खगरी कगरी अगरी हे;
सीस भरी गगरी पगरी, पगरी घुघरी  उगरी भु गरी हे;
ब्रह्ममुनि द्रगरी दगरी, लगरी लगरी फगरी रगरी हे।।

में अटकी अटकी नटकी, चटकी चटकी मटकी फटकी हु;
घुंघटकी घटकी रटकी, लटकी लटकी तटकी कटकी हु;
ज्यों पटकी थटकी थटकी, खटकी खटकी हटकी हटकी हुं;
ब्रह्म लज्यो झटकी झटकी, वटकी वटकी जटकी जटकी हुं।।

» Read more

इश-महिमा-सवैया – कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

।।सवैया।।
शत्रुन के घर सेन करो समसान के बीच लगाय ले डेरो।
मत्त गयंदन छेह करो भल पन्नग के घर में कर गेरो।
सिंह हकारि के धीर धरो नृप सम्मुख बादि के न्याय नमेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब कौन बिगार करे नर तेरो।।१

खग्ग उनग्गन बीच कढौ गिरी झांप गिरौ किन कूप अँधेरो।
ज्वाल करालन मध्य परो चढती सरिता पग ठेलि के गेरो।
राम सिया उर में धरि के प्रहलाद की साखि ते चित्त सकेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।२[…]

» Read more

माता

प्रेम को नेम निभाय अलौकिक,
नेम सों प्रेम सिखावती माता।
त्याग हुते अनुराग को सींचत,
त्याग पे भाग सरावती माता।
जीवन जंग को ढंग से जीत के,
नीत की रीत निभावती माता।
भाग बड़े गजराज सपूत के,
कंठ लगा दुलरावती माता।।1।।

» Read more
1 2