मतदातावां सूं अरज

।।छंद – भुजंगी।।
सुणै बैठनै जाजमां बात सारी।
करै पीड़ हरेवाय हाथ कारी।
जको जात -पांति नाहि भेद जाणै।
तिको आपरै द्वार पे त्यार टाणै।
विचारै सदा ऊंच नै साच वैणो।
दिलां खोल एड़ै नैय वोट दैणो।।[…]

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दीपमालिका का दीपक

मानव इस सृष्टि मे ईश्वर की सुंदरतम कृति है और वह अपने विवेक के लिए विश्ववरेण्य है। प्राणिजगत में मानव अन्य प्राणियों से अलग है तो वह अपने विवेकसम्मत व्यवहार के कारण है। विवेक मनुष्य को बुद्धिमान, व्यावहारिक एवं श्रेष्ठ बनाता है। यही कारण है कि मानव ने अन्य प्राणियों की बजाय अपने जीवन को अधिक नियोजित किया है। उसने हर कदम पर अपनी खुशियों का इजहार करने तथा आनंद लेने का प्रावधन भी किया है। हमारे यहां प्रचलित सभी त्योंहार तथा पर्व इसी कड़ी की लड़ियां हैं। होली, दीपावली, दशहरा, ईद इत्यादि सब त्योंहार इसी क्रम में उल्लेखनीय है।[…]

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माधव चरण शरण ले मूरख

माधव चरण शरण ले मूरख,
जनम मरण मिट जासी।

बावऴा क्यूं थूक विलोवै।
खऴ क्यूं जनम अकारथ खोवै।
होश गमाय बैठो है हर दिन,
गुण कद हर रा गासी।।माधव….

भटक आयो चौरासी भाया।
काट नहीं उतरियो काया।
अब तो चेत अरै उर आंधा,
पाछो कद अवसर पासी।।माधव….[…]

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बाती को मत फूंक लगा

दीपों की जगमग ज्योति के माध्यम से संसार को ज्ञान, प्रेम, सौहार्द, समन्वय, त्याग, परोपकार, संघर्ष, कर्तव्यपरायणता, ध्येयनिष्ठा एवं रचनात्मकता का पाठ पढ़ाने वाले विशिष्ट त्योहार दीपोत्सव की हार्दिक बधाई के साथ अनंतकोटि शुभकामनाएं। भारतीय संस्कृति में संतति यानी संतान रूपी दीपक को यश, प्रतिष्ठा एवं कीर्ति दिलाने हेतु माता-पिता बाती के रूप में पारिवारिक कुलदीपक कह कर पुकारा गया है। हमारे सामाजिक ढांचे को ठीक से समझें तो लगता है कि माता-पिता स्नेह-घृत के सहारे अंतिम समय तक रोशन रहते हुए अपने आपको धन्य मानते हैं। जलती तो बाती है लेकिन नाम दीपक का होता है। […]

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बोलो साच सुहाती बात

बोलो सत धार मधुर पण बोलो,
बोलो साच सुहाती बात।
व्हालां इसी कायनूं बोलो,
सुणियां सैणां नको सुहात।।

बिगड़ै संबंध बोल बाड़ां सूं,
गुण हद बिगड़ै कियां गुमेज।
तंतू नेह तणो जद तूटै,
हिरदै मिटै उफणतो हेज।।[…]

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आज रो समाज अर सराध रो रिवाज

सराध रो रिवाज आपणै समाज में जूनै टेम सूं चालतो आयो है अर आज ई चालै। जे आज री बात करां तो इयां मानो कै अबार रो जुग तो सराध रो स्वर्णिम जुग है। पैली रै जमानैं में तो मायतां रै देवलोक गमण करण रै बाद में ही सराध घालणा सरू हुया करता पण आज री पीढ़ी तो इतरी एडवांस है कै जींवता मायतां रा ई सराध करणा सरू कर दिया। बातड़ी कीं कम गळै ऊतरी दीखै पण आ बात साच सूं खासा दूर होतां थकां ई साच-बायरी कोनी। इणमें साच रा कीं न कीं कण कुळबुळावै। लारलै दिनां री बात है। अेक नामी-गिरामी अफसर आपरी जोड़ायत सागै मोटी अर मूंघी कार में वृद्धाश्रम आयो। भागां सूं बठै म्हारै जाण-पिछाण वाळी अेक समाजसेवी संस्था रा कई मानीता सदस्य भी वृद्धाश्रम री आर्थिक मदद करण सारू बठै गयोड़ा हा। मैनेजर वां सगळा सदस्यां सूं बात करै हो, इतरै तो वृद्धाश्रम रै दरवाजै कनैं अेक कार रुकी।[…]

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राज बदळियां के होसी

कांई फरक पड़ै कै राज किण रो है ?
राजा कुण है अर ताज किण रो है ?
फरक चाह्वो तो राज नीं काज बदळो !
अर भळै काज रो आगाज नै अंदाज बदळो !
फकत आगाज’र अंदाज ई नीं
उणरो परवाज बदळो !
आप – आप रा साज बदळो
न्यारा – न्यारा नखरा अर नाज बदळो !
इत्तो बदळ्यां पछै चाह्वो
तो राजा बदळो
चाह्वै राज बदळो‘र
चाह्वै समाज बदळो ।[…]

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गजल – थे भी कोई बात करो जी – जी.डी.बारहठ (रामपुरिया)

थे भी कोई बात करो जी,
भैरू जी नै जात करो जी।
अपणो बेटो पावण सारूं,
दूजो सिर सौगात करो जी।।

जनम दियो सो जर जर होया,
पीळा पत्ता झड़ जासी,
सुध-बुध वांरी मती सांभळो,
मंदिर में खैरात करो जी।।[…]

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*समय को पहचानो*

हे मित्र! समय को पहचानो,
बस इतना सा कहना मानो,
आलस से यारी मत करना,
ज्यादा होंशियारी मत करना।

ये क्षण में सबको छलता है,
पल पल में रूप बदलता है।
ये टाले से नहीं टलता है,
अपनी ही गति से चलता है।[…]

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दौरेजहाँ का दर्द

ये षड्यंत्री दौर न जाने,
कितना और गिराएगा।
छद्म हितों के खातिर मानव,
क्या क्या खेल रचाएगा।

ना करुणा ना शर्म हया कुछ,
मर्यादा का मान नहीं।
संवेदन से शून्य दिलों में,
सब कुछ है इंसान नहीं।।[…]

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