कविराज दयालदास सिंढायच

….दयालदासजी का स्थान राजस्थान के उन्नीसवीं शताब्दी के लेखकों में आदरणीय व अग्रगण्य है। गद्य के गजरे में बीकानेर के यशस्वी इतिहास को गूंथकर जो सुवास भरी वो आज भी महकती हुई तरोताजा है। नामचीन ख्यातकार, गजब के गीतकार, विश्वसनीय सलाहकार व प्रखर प्रतिभा के धनी दयालदासजी बीकानेर रियासत के देदीप्यमान नक्षत्र थे। जिन्होंने अपनी, प्रभा का प्रकाश चतुर्दिक फैलाया। ऋषि ऋण परिशोध की भावना से शोध के क्षेत्र में अभिरूचि रखने वालों को ऐसे मनीषी के साहित्यिक व ऐतिहासिक रचनाओं के शोध हेतु अग्रसर होना चाहिए ताकि इनकी लुप्त प्राय रचनाएं प्रकाश में आ सकें।[…]

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भक्तकवि महात्मा नरहरिदास बारहट

भक्त कवि श्री नरहरिदासजी बारहट महान पिता के महान पुत्र थे। इनके पिता लखाजी बारहट भी अपने समय के प्रसिद्ध कवि एवं विद्वान् थे जिन्हें मुगल सम्राट अकबर ने बहुत मान दिया। जोधपुर के महाराजा सूरसिंह जी के ये प्रीतिपात्र थे। लखाजी के दो पुत्र थे। ज्येष्ठ गिरधरदासजी एवं कनिष्ठ नरहरिदासजी। इनका जन्म १५९१ ई. में राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता उपखंड में स्थित टहला ग्राम में हुआ। नरहरिदासजी बाल्यावस्था से ही बड़े होनहार एवं तेजस्वी थे। प्रारम्भ से ही नरहरिदासजी को अपने पूर्व के संस्कारों के कारण, भगवान की कथाओं और पौराणिक शास्त्रों में बहुत रूचि थी। वे […]

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भक्तिमति समान बाई (मत्स्य की मीराँ)

राजस्थान की पुण्यधरा में अनेक भक्त कवयित्रियों ने अपनी भक्ति भावना से समाज को सुसंस्कार प्रदान कर उत्तम जीवन जीने का सन्देश दिया है। इन भक्त कवियित्रियों में मीरां बाई, सहजो बाई, दया बाई जैसी कवियित्रियाँ लोकप्रिय रही है। इनकी समता में मत्स्य प्रदेश की मीराँ के नाम से प्रख्यात समान बाई का अत्यंत आदरणीय स्थान है। राजस्थान के ग्राम, नगर, कस्बों में समान बाई के गीत जन-जन के कंठहार बने हुए हैं। पितृ कुल का परिचय: समान बाई राजस्थानी के ख्याति प्राप्त कवि रामनाथ जी कविया की पुत्री थी। रामनाथजी के पिता ज्ञान जी कविया सीकर राज्यान्तर्गत नरिसिंहपुरा ग्राम […]

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कविवर जाडा मेहडू (जड्डा चारण)

कविवर जाडा मेहडू चारणों के मेहडू शाखा के राज्यमान्य कवि थे। उनका वास्तविक नाम आसकरण था। राजस्थान के कतिपय साहित्यकारों ने अपने ग्रंथों में उनका नाम मेंहकरण भी माना है। किंतु उनके वशंधरो ने तथा नवीन अन्वेषण-अनुसंधान के अनुसार आसकरण नाम ही अधिक सही जान पड़ता है। वे शरीर से भारी भरकम थे और इसी स्थूलकायता के कारण उनका नाम “जाड़ा” प्रचलित हुआ। जाडा के पूर्वजों का आदि निवास स्थान मेहड़वा ग्राम था। यह ग्राम मारवाड़ के पोकरण कस्बे से तीन कोस दक्षिण में उजला, माड़वो तथा लालपुरा के पास अवस्थित है। दीर्धकाल तक मेहड़वा ग्राम में निवास करने के […]

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स्वामी ब्रह्मानंद जी (लाडूदान जी आसिया)

सिरोही का राज दरबार खचाखच भरा हुआ था। महाराजा के कहने पर, युवा कवि लाडूदान आसिया ने अपनी स्वरचित कविताएं सुनाना शुरू कर दिया। बच्चे के शक्तिशाली और धाराप्रवाह काव्य वाचन ने दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया, काव्यपठन समापन होते ही करतल ध्वनि और वाहवाही से पूरा राज दरबार गूँज उठा। भीड़ अभी भी विस्मय से युवा कवि के बारे में चर्चा कर रही थी, सिरोही के महाराजा के मन में विचार आया “कितना अच्छा हो यदि हमारे राज्य के इस अमूल्य रत्न की प्रतिभा की महक हर जगह फैले। ” इस सदाशय से सिरोही के महाराजा ने भुज […]

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पद्मश्री भक्त कवि दुला भाया काग

दुला भाया काग (२५ नवम्बर १९०२ – २२ फ़रवरी १९७७) प्रसिद्ध कवि, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म सौराष्ट्र-गुजरात के महुवा के निकटवर्ती गाँव मजदार में हुआ था जो अब कागधाम के नाम से जाना जाता है। दुला भाया काग ने केवल पांचवी कक्षा तक पढाई करी तत्पश्चात पशुपालन में अपने परिवार का हाथ बंटाने में लग गए। उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी हिस्सा लिया। उन्होंने अपनी जमीन विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में दान दे दी। उनके द्वारा रचित “कागवाणी” 9 खंडो में प्रकाशित वृहत ग्रन्थ है जिसमे भक्ति गीत, रामायण तथा महाभारत के वृत्तांत और गांधीजी […]

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कविराजा बांकीदास आसिया

कविराजा बांकीदास आसिया का जन्म वि.सं.1828 (ई.1771) में जोधपुर राज्य के पचपद्रा परगने के भांडियावास गाँव में हुआ। ये अपने ज़माने के डिंगल भाषा के श्रेष्ठतम कवि माने जाते हें। इन्होंने 26 ग्रंथों की रचना की, जिनमे से “बांकीदास री ख्यात” सर्वप्रमुख रचना है। यह ग्रंथ, ख्यात लेखन परम्परा से हटकर लिखा गया है। यह राजस्थान के इतिहास से सम्बन्धित घटनाओं पर लिखा गया 2000 फुटकर टिप्पणियों का संग्रह है। ये टिप्पणियाँ एक पंक्ति से लेकर 5 से 6 पंक्तियों में लिखी गई हैं तथा राजस्थान के इतिहास लेखन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। नागरी प्रचारणी काशी ने बांकीदास […]

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कविराज करणीदान कविया

जयपुर नरेश जयसिंह व जोधपुर के महाराजा अभय सिंह तीर्थ यात्रा पर पुष्कर पधारे थे, दोनों राजा पुष्कर मिले और अपना सामूहिक दरबार सजाया, दरबार में पुष्कर में उपस्थित दोनों के राज्यों के अलावा राजस्थान के अन्य राज्यों से तीर्थ यात्रा पर आये सामंतगण शामिल थे, दरबार में कई चारण कवि, ब्राह्मण आदि भी उपस्थित थे, दोनों राजाओं के चारण कवि अपने अपने राजा की प्रशंसा में कविताएँ, दोहे, सौरठे सुना रहे थे, तभी वहां एक कवि पहुंचे जो निर्भीकता से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते थे। महाराजा अभयसिंह जी ने कवि का स्वागत करते कहा – बारहठ […]

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कविराजा श्यामल दास

महामहोपाध्याय कविराजा श्यामलदास के पूर्वज मारवाड़ के मेड़ता परगने में दधिवाड़ा ग्राम के रहने वाले देवल गोत्र के चारण थे। इस गांव में रहने के कारण ये दधिवाड़िया कहलाये। इनके पूर्वज जैता जी के पुत्र महपा (महिपाल) जी को राणा सांगा ने वि.स. 1575 वैशाख शुक्ला 7 को ढोकलिया ग्राम सांसण दिया जो आज तक उनके वंशजों के पास है। महपाजी की ग्यारहवीं पीढ़ी में ढोकलिया ग्राम में वि.सं. 1867 के जेष्ठ माह में कम जी का जन्म हुआ। बड़े होने पर वे उदयपुर आ गये। वे महाराणा स्वरूपसिंह व शम्भुसिंह के दरबार में रहे जहां उन्होंने दोनों राणाओं से […]

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ठा. केसरी सिंह बारहट

जीवन परिचय जिन लोगों ने समाज और राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वस्व ही समर्पित कर डाला हो, ऐसे ही बिरले पुरुषों का नाम इतिहास या लोगों के मन में अमर रहता है। सूरमाओं, सतियों, और संतों की भूमि राजस्थान में एक ऐसे ही क्रांतिकारी, त्यागी और विलक्षण पुरुष हुए थे – कवि केसरी सिंह बारहठ, जिनका जन्म २१ नवम्बर १८७२ में श्री कृष्ण सिंह बारहठ के घर उनकी जागीर के गांव देवखेड़ा रियासत शाहपुरा में हुआ। केसरी सिंह की एक माह की आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया, अतः उनका लालन-पालन उनकी दादी-माँ ने किया। उनकी […]

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