पटवारी री पुकार – कवि स्व. भंवर दान जी, झणकली

14 बरस पढ़ाई चाली खर्ची रकम करारी।
भाभोसा परसादी बांटे बण्यो पूत पटवारी।
पहली ठकराहत पटवारी, दूजी थानेदारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।1।।

दे ट्रेनिंग कयो हल्का माँ जाइन करो ड्यूटी जाके।
तीजे दिन तेहसीलदार सा इंस्पेक्सन करसी आके।
पैदल रस्ता हालत खस्ता ऊपर बस्ता भारी रे।
कोण सुणै पटवारी थारी नोकरड़ी सरकारी रे।।2।।[…]

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डफोळाष्टक डूंडी – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।डफोळाष्टक-डूंडी।।
(सवैया)
ऊसर भूमि कृसान चहै अन, तार मिलै नहिं ता तन तांई।
नारि नपुंसक सों निसि में निज, नेह करै रतिदान तौ नांई।
मूरख सूम डफोलन के मुख, काव्य कपोल कथा जग कांई।
वाजति रै तो कहा वित लै बस, भैंस के अग्र मृदंग भलांई।।1।।[…]

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मैं विप्लव का कवि हूँ !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।

मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन;
अरे, किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।[…]

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डिंगल फेशन – कवि भंवरदान गढवी “मधुकर”

इण पढ्यो लिख्यो री पंगत में, जुनोड़ा आखर कुण जांणे।
नखरा कर नये जमांने रा, तिरछी हद रागां लो तांणे।।
जा जोर तमासा कर जितरा, जोवे जनता मन जोकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।१

ऊचे शब्दां रा अरथ करे, वो कूंत करणिया रैया कठे।
जुनी भाषा ने जांणणिया, अब देख किता सच कया अठे।।
तड़का बाजे लै ताड़ी रा, हाका कर लड़का होकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।२[…]

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डिंगल काव्य केवल वीर रस प्रधान ही नहीं इसमें हास्य रस भी है-मोहन सिंह रतनू

महान भक्त कवि ओपा जी आढा को देवगढ के कुंवर राघव देव चूंडावत ने ऐक घोड़ा भेंट किया। घोड़ा बूढा एवं दुर्बल था।
इस पर कवि ने कुंवर को उलाहना स्वरूप एक गीत लिखा…देखिये सुंदर बिंनगी

धर पैंड न चालै माथो धूणै,
हाकूं केण दिसा हैराव।
दीधो सो दीठो राघव दे,
पाछो ले तूं लाख पसाव।।1[…]

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हे मायड़ भाषा ! माफ करजै !

हे मायड़ भाषा! माफ करजै!
म्हे थारै सारू
कीं नीं कर सकिया!
फगत लोगां रो
मूंडो ताकण
उवांरी थल़कणां
धोक लगावण रै टाल़!
थारै नाम माथै
रमता रैया हां[…]

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गीत कोठारियां री अनीति रौ – जनकवि ऊमरदान लाळस

ऐक गीत उमरदानजी लाऴस री दबंगता दरसावतो, जिणमें तीन कोठारी बाणियां रा माजाया भाई, चारणां रा मुंदियाड़ ठिकाणा में घणी रापटरोऴ मचाय लूटणो शुरु करियो अर बठां रा ठाकुर साहब चैनसिंहजी बारहठ ने घणा दुखी करिया। सेवट आ बात उमर कवि कनै पूगी। कवि मारवाड़ रा तत्कालीन मुसाहब आला सर प्रताप रा खास मानिता हा, वै निडरता दिखावता थका बाणियां रो हूबोहूब गीत बणाय सर प्रतापसा ने खऴकायो अर कोठारियां री कामदारी ने खोस जेऴ में न्हाक मुंदियाड़ ने बचाई।

।।गीत – बड़ी सांणौर।।
पुत्र वणक त्रहुं भ्रात अन्याव रा पूतळा,
छिद्र कलकता तक न को छांनां।
जुलम री करी वातां जिके जणावूं
कळपतरु सुणीजे पता कांनां।।1।।[…]

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मोटी मरजादण मरुभाषा

सतियां रै सत री गाथावां
पतियां रै पत री घण बातां।
जतियां रै जंगी जूझारू
जीवण री जूनी अखियातां।।
संतां री वाणी सीख भरी
सूरां रा समर अनै साका।
वीरां वरदाई बड़भागण
मोटी मरजादण मरुभाषा।। […]

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सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह

कवि गिरधर दान रतनू “दासोडी” द्वारा “काव्य-कलरव” अर “डिंगळ री डणकार” ग्रुप रा कवियों ने निश्क्रिय रेवण सूं दियौडौ एक ओळभो देती कलरव अर डिंगल़ री डणकार रा मुख्य संरक्षक / संरक्षक आदरणीय भूदेवसा आढा अर चंदनसा नैं एक अरजी-
सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह।
जोगां किमकर झालियो, अपणो अपणो गेह?
सही सँरक्षक सांभल़ो, वडपण मनां विचार।
भागल मन कवियां भयो, डिंगल़ री डणकार।।1
वय में आढो वृद्ध है, इणकज करै अराम।
चंदन थारी चतुरता, किणदिन आसी काम।।2
पूछै कारण प्रेम सूं, नेही काढ निदान।
जमी राखजै जाजमां, चोगी चंदनदान।।3

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इसड़ी म्हारी राम कहाणी

खावण नै फगत उबास्यां है,
पीवण नै आंख्यां रो पाणी।
दुख जा दुख नै दुख सुणावै,
इसड़ी म्हारी राम-कहाणी।।

कूंपळ कूंपळ मगसी मगसी,
पत्तो पत्तो सूखो सूखो।
तितली तितली तिसी तिसी सी,
भंवरो भंवरो भूखो भूखो।।
कोयल री पांखां सा पाटा
आळां मंडराता सण्णाटा।
स्यात म्हारड़ै खातै लिख दी,
विधना जग री सकळ विराणी।। 01।।[…]

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