मैं ही तो मोरवड़ा गांव हूं

मैं ही तो मोरवड़ा गांव हूं। हां भावों के अतिरेक में हूं तभी तो यह मैं भूल ही गया कि आप मुझे नहीं जानतें। क्योंकि मेरा इतिहास में कहीं नाम अंकित नहीं है। होता भी कैसे ?यह किन्हीं नामधारियों का गांव नहीं रहा है। मैं तो जनसाधारण का गांव रहा हूं जिनका इतिहास होते हुए भी इतिहास नहीं होता। इतिहास सदैव बड़ों का लिखा व लिखाया जाता है। छोटों का कैसा इतिहास?वे तो अपने खमीर के कारण जमीर को जीवित रखने के यत्नों में खटते हुए चलें जाते हैं।…
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