परित्यक्ता / पुनर्मिलन – कवियत्री छैल चारण “हरि प्रिया”

।।परित्यक्ता।।

उर में अति अनुराग सखी,
विरह की मीठी आग सखी!!
नयन भटकते दूर दूर जब
आँगन बोले काग सखी !!
अपनी ही सांसों में दो रुत,
लख कर जाती जाग सखी!![…]

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दई न करियो भोर

।।दोहे।।
कजरी, घूमर, लावणी, कत्थक, गरबा, रास।
थिरकूं हर इक ताल पे, जब आये पिय पास।।१
बीण, सितार, रबाब, ड़फ, मुरली ढोल मृदंग।
जब वो आए ख्वाब में, सब बाजै इक संग।।२
खड़ी याद की खेज़ड़ी, मन मरुथल के बीच।
शीतल जिसकी छाँव है, सजन! स्नेह जल सींच।।३
अँसुवन काजल कीच में, खिले नैन जलजात।
खुशबू से तर याद की, मन भँवरा सुख पात।।४[…]
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ओल़्यू

बालमजी नें जाय कहिजो रे आवो म्हारै देस!
ओल़्यू थांरी आवे म्हानैं रे छोडो परदेस!!

बागां में कोयल बोले रे, भँवरा भटकेह!
पण थां बिन पुरी प्रथमी रे, खाविंद खटकेह!!
एकर अरजी म्हानौ मारी रे छोडो परदेस रे थें छोडो परदेस!
बालमजी नें जाय कहिजो रे आवो म्हारे देस![…]

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दीकरा – गज़ल

तूं तो ग्यो परदेस दीकरा।
सूनो करग्यो नेस दीकरा।।
कदै आय पाती विलमाती।
अब बदल़्यो परिवेस दीकरा।।
गया ठामडा भाज दीकरा!
रांधूं कीकर आज दीकरा!
छाछ मांगनै करूं राबड़ी
नहीं घरां पण नाज दीकरा!

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गजल

कांई थांने याद है हा पोर खिलिया फूल हरियल बाग में!
नाचता हा मोर गाती कोयलां इण ठौड पंचम राग में!
डोलता तरु डाळ सौरम लेण मिस हर पळ अली भाळे कळी,
बीण, डफ, मंजीर जिम गुंजार जाणे घुळी सोरठ राग में!

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बिरहण अर बाँसुरी

बिरहण बोदी बाँसुरी,साजण जिण री फूंक।
घर आयां पिव गावसी,कोयल रे ज्यूं कूक।।१
बिनां फूंक री बाँसुरी,बिरहण अर बिन नाह।
ऐ दोन्यूं है एक सी,जीवण नीरस जाह।।२
बजै बिरह री बाँसुरी, अहनिस बिरहण अंग।
जिण रा सुर सुण रीझता,कविता रसिक कुरंग।।३ […]

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पाती लिखतां पीव नें

पाती लिखतां पीव नें, उपजै भाव अनेक।
मन तन री पर मांडवा,आखर मिल़े न एक।।१
पाती लिखणी पीव नें,बात न लागै ठीक।
कीकर भेजूं ओल़भा,दिलबर दिल नजदीक।।२
पाती तो उण नें लिखां,दिल सूं होय जो दूर।
उणने कीकर भेजणी,जो मन-चंदा-नूर।।३ […]

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फागण रा दूहा

तन तो पिव मैं रंग लूं,मन रंगूं किण भाँत|
इण फागण आया नहीं,धणी करी घण घात||१
फागण फूल उछाळतौ,अलबेलौ अणपार|
आयौ मन रे आंगणै,करै प्रेम मनुहार||२
फागण इतरो फाट मत,फूल न मौ पर फैक|
विरहण धण री वेदना,समझ करे सुविवेक||३ […]

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आ रे मेरे जोगिया

इश्क चदरिया मैं सखी!,करूं गेरुआ रंग।
फिर बन बन डौलत फिरूं,निरमोही के संग॥1

जोगी के दरबार से,आया यह संदेश।
बांध गठरिया देह की, चलो बिराने देश॥2

जोगी तेरे नैन में, देख सजूं शृंगार।
इश्क चुनरिया ओढ फिर, करूं प्रणय मनुहार॥3 […]

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बिरहण धण रो ओळभौ

कंथा कंथा पेर ने, बण जातौ थूं संत।
तौ नी पंथ उडीकती, साची बात कहंत॥1
पण थूं चाल्यौ चाकरी, पकडी वाट विदेश।
इणसूं थने उडीकती, रहती राज हमेश॥2
दिन उगियां पूछुं पथिक, रोज उडाडूं काग।
तौ पण थूं आवै नहीं, फूटा मारा भाग॥3 […]

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