कुरजां बिरहण यूं कहै
कुंझडियां परदेसियां,आवै अर उड जाय।
साच नेह सफरी तणो,जळ भेळी सूखाय॥1
पावस मास विदेस पिव,जळूं विरह री झाळ।
थूं कुरजां बरसात में,भींजै सरवर पाळ॥2
कुरजां थारी पांख पर,आखर लिखूं अथाह।
बालम नें बंचाय दे,बिरहण मन री आह॥3 […]
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कुंझडियां परदेसियां,आवै अर उड जाय।
साच नेह सफरी तणो,जळ भेळी सूखाय॥1
पावस मास विदेस पिव,जळूं विरह री झाळ।
थूं कुरजां बरसात में,भींजै सरवर पाळ॥2
कुरजां थारी पांख पर,आखर लिखूं अथाह।
बालम नें बंचाय दे,बिरहण मन री आह॥3 […]
लाखौ बिणजारौ कवी, बाळद भर भर याद।
नवी पुरांणी जोडतो, उकति भाव उस्ताद॥1
यादों वाळी जान जद, आवै आंगण द्वार।
उण दिन कविता धारसी, अलंकार रो भार॥2
यादों री जद जद चले, दो धारी तलवार।
वा हीचकी लेती रहै, अठै दरद अणपार॥3 […]
कागा पग लागां थनै, मागां इतरो मीत।
घर री जागा बैठ मत, उड कर विरहण हीत॥1
कागा पुरसूं आप कज, खांड मलाई खीर।
खाय’र उडजा आवसी, तदै नणद रो बीर॥2
कागा थुं करकस घणौ, कडवा थारा बेण।
विरहण तौ पण राखती, नत्त नजीकां नेण ,॥3 […]