बसो नित मो चित श्री हरि : छंद – मत्तगयंद

!!छंद – मत्तगयंद!!
मंजुल श्यामल गात मनोहर नाथ दयानिधि देव मुरारी !
है लकुटी कर ;पीत धरे पट कामरि ओपत सुंदर कारी!
गुंजन माल गले बिच सोहत मोर पखा युत पाग सु धारी!
केशव नंद किशोर! बसो नित मो चित श्री हरि रासबिहारी!! १]…]

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श्री करुणाकर-कीर्ति – डॉ. शक्तिदान कविया

।।छंद रेंणकी।।
धर अम्बर सधर अधर कर गिरधर, जग सुर नर अहि नाम जपै।
झंगर गिर सिखर सरोवर निरझर, तर तटनी मुनि प्रवर तपै।
सुन्दर घनस्याम विसंभर श्रीकर, भूघर नभचर उदर भरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै।
(जिय) करुणाकर निस्तार करै।।1।।[…]

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मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में रामभक्ति परंपरा

….कविवर हमीरजी रतनू के शब्दों में–
कह तपनीय पीतरंग कुरमदन, जातरूप कल़धोत जथा।
लाख जुग लग काट न लागै, कल़ंक न लागै रांम कथा।।
इस काट रहित कथा को आधार मानकर राजस्थानी कवियों ने राम महिमा और नाम निर्देशन का जो सुभग संदेश जनमानस को दिया है उनमें मेहारामायण (मेहा गोदारा), रामरासो (माधोदास दधवाड़िया) दूहा दसरथराउत रा (पृथ्वीराज राठौड़), रामरासो (सुरजन पूनिया), रामरासो रसायन (केसराज), रामरास (रूपदेवी), रामसुयश (केसोदास गाडण), रुघरास (रघुनाथ मुंहता) भक्तमाल (ब्रह्मदास बीठू), रुघनाथ रूपक (मंछाराम सेवग), रघुवर जस प्रकाश (किसनाजी आढा), के साथ नरहरिदास बारठ, पीरदान लाल़स प्रभृति नाम गिनाएं जा सकते हैं….

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श्री राम वंदना

।।छंद-मधुभार।।
करुणा निकेत, हरि भगत हेत।
अद्वैत-द्वैत, सुर गण समेत।।१
हरि! वंश हंस। अवतरित अंश।
नाशन नृशंश। दशकंध ध्वंश।।२
वर प्रकट वंश! ईक्षवांकु अंश!
पृथ्वी प्रशंश! वरदावतंश।।३
रघुनाथ राम। लोचन ललाम।
कोटीश काम। मनहर प्रणाम।।४

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प्रभू पच्चीसी

।।गुणसबदी।।
पख लीनी पहळाद री पाधर, दैत रो गाळण दंभ।
नरहरि बण नीकळयो नांमी, खांमद फाड़ण नैं खंब।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१

प्रेम सूं कीर सुणावतो प्रागळ, गोविन्द री गुणमाळ।
मोचिया पाप गणिका रा माधव, सुणती बैठ संभाळ।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२[…]

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श्रीकृष्ण-सुदामा प्रीत का गीत – दुर्गदानजी जी

ठहीं भींत सोवण तणी तटी रे ठकाणे,
कुटि रे ठकाणे महल कीना।।
मिटी रे आंगणे जड़ी सोनामणि,
दान कंत रूखमणी तणे दीना।।1।।

झांपली हती ओठे प्रोळ आवे झकी,
जिका न ओळखी विप्र जाहे।।
बाँह गहे सुदामो तखत बेसाड़ियो,
मलक रो धणी कियो पलक मांहे।।2।।[…]

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रंगभर सुंदर श्याम रमै – स्वामी ब्रह्मानंद जी

।।छंद – रेणकी।।
सर सर पर सधर अमर तर अनसर,करकर वरधर मेल करै।
हरिहर सुर अवर अछर अति मनहर, भर भर अति उर हरख भरै
निरखत नर प्रवर प्रवरगण निरझर, निकट मुकुट सिर सवर नमै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।।[…]

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गीत वांमणावतार रौ – महाकवि नांदण जी बारहठ

गीत वांमणावतार रौ (नांदण कहै)

आखै दरबार ब्रिहामण उभा,अंग दिसै लुघ वेदअगांह।
रीझ सु इती दीधयै मो राजा,मांडू मंढी जिती भुंम मांह।।1

विप्र विनंतिपयंपै वांमण,मैहर करै लेइस माप।
इळ थी आठ पांवडा अमकै,एकण कुटी जिती तूं आप।।2

जग ताहरा तणौ सांभल जस,हूं आयो मन करै हट।
दुज उंचरै दीये मो दाता,धर्मसाला जेतली धर।।3[…]

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सुबोध बावनी – कवि देवीदान देथा (बाबीया – कच्छ)

[…]वेद सार खंड ससि, वाम अंक गति मिति,
नौमि गुरू शुक्ल मधु मास के समास ही।
देथा मारू चारन जो भव्य है कहाति जाति,
देस कच्छ स्वच्छ ग्राम बाबिया निवास ही।
देवीदान दीनो “देवी दास” ही प्रकास कीन्हौ,
नवीनो नगीनो ग्रंथ बावनी विलास ही।
सुबुधि उपावनी सो, ताप को नसावनी है,
भावनी सुजान को, बढावनी हुलास की।।५४।।[…]

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गये बिसारी गिरधारी – त्रिभंगी छंद – स्व. देवीदान देथा (बाबीया कच्छ)

।।छंद त्रिभंगी।।
ब्रज की सब बाला, रूप रसाला, बहुत बिहाला, बिन बाला,
जागी तन ज्वाला, बिपत बिसाला, दिन दयाला, नंद लाला।
आए नहि आला, कृष्ण कृपाला, बंसीवाला, बनवारी।
कान्हड़ सुखकारी, मित्र मुरारी, गये बिसारी, गिरधारी।।१[…]

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