छंद शेखर रासाष्टक चंचरीक(चर्चरी)छंद

।।छंग – चर्चरी / चंचरीक।।

इक निशि ससि अति उजास, प्रौढ शरद रूतु प्रकास,
रमन रास जग निवास, चित विलास कीन्है।
मुरली धुन अति रसाल, गहरे सुर कर गुपाल,
तान मान सुभग ताल, मन मराल लिन्है।
ब्रह्मतिय सुन भर उछाव, बन ठन तन अति बनाव,
चितवत गत नृत उछाव, हाव भाव साचै।
हरि हर अज हेर हेर, बिकसित सुर बेर बेर,
फरगट घट फेर फेर, नटवर नाचै।।१[…]

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छंद शेखर श्री रासाष्टक रेणकी छंद

🌸छंद रेणंकी🌸
सर सर पर सधर अनर तर अनुसर,कर कर वर घर मेल करे|
हरि हर सुर अवर अछर अति मनहर,भर भर अति उर हरख भरे|
निरखत नर प्रवर प्रवर गण निरजर,निकट मुकुट सिर सवर नमें|
घण रव पट फरर फरर पद घुंघर, रंग भर सुंदर श्याम रमें| १

झणणणण झणण खणण पद झांझर,गोम धणण गणणण गयणे|
तणणण बज तंत ठणण टंकारव,रणणण सुर धणणण रयणे|
त्रह त्रह अति त्रणण घणण अति त्रांसा,भ्रमण भमरवत रमण भमें|
घण रव पट फरर फरर पद घुंघर, रंग भर सुंदर श्याम रमें| २ […]

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दशावतार रूप स्वामी सहजानंद स्तुति

छंद रोमकंद
प्रथमं धर रूप अनूप प्रथी पर, कायम मच्छ स्वयं छकला|
जळ लोध करै महा जोध पति जग, कारण सोहि लई कमला|
शिर छेद संखासुर वेद लिये सब मेटण खेद विरंचि मही|
अति आणंद कंद मुनिंद अराधत, सो सहजानंद रूप सही||१

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श्री हरि काव्याष्टक

छंद त्रिभंगी
सुंदर छबि प्यारी, त्रिभुवन न्यारी, अनँत अपारी, उपकारी|
अगणित नरनारी, शरण उगारी, भव दुखवारी, ऊतारी|
सिखवत बुधि सारी, विषय बिसारी, रटत उचारी, त्रिपुरारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||१

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राधा रमण देव स्तुति

।।छंद सारसी/हरिगीतिका।।
जेहि नाम आधा, गयँद साधा, जल अगाधा, अंतरे।
जब जूड खाधा, करी हाधा, शरण लाधा, अनुसरे।
मिट गई उपाधा, चैन बाधा, बंध दाधा, धा करी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा, श्रीहरी।।1

वसुदेव द्वारे, देह धारे, भार टारे, भोमके।
सुरकाज सारे, संत तारे, द्वैषी मारै, होम के।
सुरपति हँकारे, मेघ बारै, ब्रज उगारै, गिरधरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।2[…]

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ईश आराधना

नखड़ै हिरणाख विडारण नागर सागर मे तजी सैज सजी
पहिल़ाद उबारण कारण पाधर भाल़ सुं आविय नाथ भजी
उण वेल़ धरा अर धूजिय अंबर थंब फटै नरसिंघ थयो
रघुनाथ घणा रँग तो बड राजन साजण देव सुमोख सयो १ […]

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संत फकीर मलंग शिवागिरि

मस्त जटी मन बैठ मढी मह बांसुरि खूब बजाय रह्यो है।
हाथ कडा पहने नित धूरजटी शिव आप रिझाय रह्यौ है।
साधक औ सुर रो शिव सेवक तानन सूं कछू गाय रह्यौ है।
आतम ने कर कृष्ण मयी परमातम राधा रिझाय रह्यौ है॥

सुंदर मोहनि मूरत बांसुरि, फेर लियां अधरां सुखकारी।
मस्त बजाय रह्यौ जिम मोहन, औ शिव है वृषभानु दुलारी।
आप बिना नह आश्रय है रख लाज हमार सुणौ जटधारी।
संत फकीर मलंग शिवागिरि पांव पडूं सुण हे अलगारी॥ […]

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हरिरस (भक्त कवि महात्मा ईसरदास प्रणीत)

।।मंगलाचरण।।
पहलो नाम प्रमेश रो जिण जग मंड्यो जोय !
नर मूरख समझे नहीं, हरी करे सो होय।।१

!! छंद गाथा !!
ऐळेंही हरि नाम, जाण अजाण जपे जे जिव्हा !
शास्त्र वेद पुराण, सर्व महीं त‍त् अक्षर सारम्।।२

!! छंद अनुष्टुप !!
केशव: क्लेशनाशाय्, दु:ख नाशाय माधव !
नृहरि: पापनाशाय, मोक्षदाता जनार्दनः।।३[…]

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