भगवती तेमड़ाराय नै दिया शाकाहारी रहने का सुभग संदेश

तेमडाराय

चौपासणी गांम रतनू गेहराजजी को भीम राठौड़ ने दिया था। इन्हीं गेहराजजी की संतति में आगे चलकर रतनू चांपोजी हुए जो तेमड़ाराय के अनन्य भक्त थे। एकबार वे तेमड़ाराय के दर्शनार्थ जैसलमेर स्थित तेमड़ाराय के थान जा रहे थे। जब निर्जन वन के बीच पहुंचे तो पानी समाप्त हो गया, इन्हें अत्याधिक प्यास लग गई। करे तो क्या करे!! हारे को हरि नाम ! इन्होंने भगवती को याद किया-

चांपो नगर चौपासणी, राजै रतनू राण।
बात ख्यात अर विगत री, जाझी साहित जाण।।1

गढवी गिरवरराय री, धुर उर भगती धार।
दूथी टुरियो दरसणां, करण मनोरथ कार।।2

तिरस लगी ताकव तरां, निठियो मारग नीर!
आप बिनां कुण आवसी, भवा करण नैं भीर!!3

जल़-बल़ खूटो जोगणी, तन-बल़ तूटणहार।
वन इण निरजन बीसहथ, सकव तणी ले सार।।4

जल़ ही जीवण जाणियो, जल़ बिन जीवण नाय।
नी भूई में शंकरी, आप उबारो आय।।5

बण उण पुल़ में बाल़का, आई चाल़का आप।
करुणाल़ी झट काटियो, सकवि तणो संताप।।6

करां नीर रो कल़सियो, समवड़ इमरत सोय।
मग डग दीठी मुल़कती, हेतव हरसित होय।।7

बीसहथी तन बाल़का, सकवी माग सभेट।
पाणी पीजै पात तूं, मन तन चिंता मेट।।8

चविया चांपै वचन चित, बूझण पूरी बात।
री पीवूं न जाण बिन, जरां बतावो जात!!9

बामण री धिया विदग, जाल़ निवासण जोय।
पावूं पाणी पथिक नै, कर मत शंका कोय।।10

पीधो पाणी पात पुनि, बुध्द रो हुवो विकास।
उर री मिटी अग्यानता, अंतस परगट उजास।।11

चांपो लखियो चंडका, परा पकड़िया पाव।
राजी व्ही गिरराजणी, भाल़ भगत रा भाव।।12

आई इम जद आखियो, व्हाला सुण मो बात!
चावो थान चौपासणी, साच थरप सुखदात।।13

महि इण दीनी मानसूं, जगसर आगे जात।
रसा ब्रह्माणी रूप नै, परतख पूजै पात।।14

परहरजै हिसा परतख, चकर बकर ना चाव।
लाजै पूजा लापसी, भल़ै चढावण भाव।।15

मद मत लाजै मँदिर में, दिल रख हिंसा दूर।
निमल़ भावां रख पात नित, पुनि भगती भरपूर।।16

दूध पतासा गुड़ दुरस, निज लीलो नाल़ेर।
चरण शरण ले चाढजै, भाव भल़ै शुद्ध भेर।।17

रकतपात मँदिर रसा, करजै मत कवियांण।
निज चरणां भगती निमल़, सदा रखै सुभियांण।।19

कहियो चांपै जोड़ कर, सुणै अरज सुरराय।
अडग पाल़ आदेश री, मनशुद्ध करसूं माय।।20

उण दिन सूं आ आज दिन, परापरी सूं प्रीत।
पाल़ै रतनू परगल़ी, रखी बडेरां रीत।।21

उसी समय भगवती तेमड़ाराय एक कन्या के रूप में पाणी से भरा कलश लिए मिली। प्यासे चांपाजी को पानी पीने हेतु कहा।

अपने नियमों के पक्के चांपाजी ने पूछा कि “हे बाई मैं हर किसी का पानी पीता नहीं अतः मुझे आपकी जात बताएं।”

कन्या ने कहा- “मैं तो ब्राह्मण कन्या हूं और पास में ही मेरी इन जालो में ढाणी है। इधर से आने-जाने वाले प्यासे यात्रियों को प्रायः पानी पिलाने का कार्य करती हूं। आप निःसंकोच पानी पीएं।”

जैसे ही चांपाजी ने पानी पीया, उनकी बुद्धि प्रखर हो गई। उन्होंने उस कन्या के पांव पकड़ लिए। भगवती प्रकट हो गई और बोली कि- “मेरा स्थान चौपासणी में ही स्थापित कर वहीं पूजा कर। मैं तेमड़ाराय की जात वहीं मान लूंगी। लेकिन आजके बाद गांव में कभी भी हिंसा मत करना और मांस-मदिरा से दूर रहना।”

चांपाजी ने ऐसा ही किया। उस दिन के बाद से चौपासणी में मांस निषेध है, जिसकी पालना चौपासणी वासी आज तक बड़ी दृढता से कर रहें हैं।

संदर्भ- श्री मोहन सिंहजी रतनू चौपासणी
लेकिन भविष्य की पीढ़ी की मनोदशा को देखकर दादा का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने पुनः तेमड़ाराय से निवेदन किया-

करै जोड़ै चांपै कैयो, तूं अमणां पर तूठ।
पीवण मद मो पोतरां, छती दिरावो छूट।।

जब मा ने कहा-

जद यूं कहियो जामणी, छती दिवी मद छूट।
थिर अल़गा रह थांन सूं, घट हद ढाल़ै घूंट।।

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

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