‘थळवट बत्तीसी’ बनाम ‘थळवट रौ थाट’ – कविराजा बांकीदास आशिया / डॉ. शक्तिदान कविया

(कविराजा बांकीदास आशिया धोरा-धरती वाळी थळवट री बत्तीस दूहां में अबखायां अर कमियां गिणावतां लोगां नैं इण क्षेत्र में कदैई नीं आवण री बात कही। इण बात रो सखरो जवाब देवतां राजस्थानी रा प्रसिद्ध कवि डॉ. शक्तिदान कविया ‘थळवट रौ थाट’ नाम सूं बांकीदासजी रै हर दूहै रो पडूत्तर देय थळवट री वधतायां गिणाई अर इण सूं हरदम हेत करण री बात कही। ‘थळवट बत्तीसी’ बनाम ‘थळवट रौ थाट’ सूं कीं टाळवां दूहा)
थळवट बत्तीसी (बांकीदास आशिया)
जेथ वसै भूतां जिसा, मानव विना मुआंह।
ढोल ढमंकै नीसरै, पांणी अंध कुआंह।।
जठै पुरांण न संचरे, उर तें जाड अभंग।
विमळ हुवै किण विध वसन, साबू जळ नंह संग।।
नीर प्रघळ तर छांह नह, आवै लुआं लपट्ट।
नांज दिखावै नारयण, ऊनाळै थळवट्ट।।
सास पियै पीणां सरप, जवा रुधिर पी जाय।
पांणी खारौ पियण नै, की जण प्यास बुझाय।।
पौ फाटां चालै पही, सिर आयां किरणाळ।
नीठ गांम पहुंचै कहै, धोरां हदै ढाळ।।
पंथी मारग पांतरै, हियाफूट हुय हार।
जंबक हूहू रव करै, सूनी माळ मंझार।।
सुपनै ही उण देसड़ै, श्रवण रसण सुख दांन।
नर न सुणै खावै नहीं, पिक वांणी पकवांन।।
नंह जांणै दारू नसौ, सौंधा तणी सुवास।
जळ तिरणौ जांणै नहीं, वसिया थळवट वास।।
उमंग जमाई आवियां, कै दीवाळी रात।
थळियां घर दीवौ हुवै, वसुधा जाहर बात।।
थळ हंदौ पूठी रखौ, एवड़ जांणै आथ।
सुतर सजाई करण रौ, हूनर ज्यांरै हाथ।।
फोगां वन फूलै फळै, कूंभट खेजड़ कैर।
थळवासी राजी थियै, सुख पावै वन सैर।।
नर भूखा तर झंखरा, धोरां ढूड़ उडंत।
अळगा-अळगा गांमड़ा, जठै म जाजे कंत।।
साळ ठिकांणै झूंपड़ा, भींत ठिकांणै वाड़।
वाड़ी एवज फोग वन, लिखिया जकां लिलाड़।।
थळवट रौ थाट (शक्तिदान कविया)
थळ रा वासी थेट सूं, हरी उपासी होय।
अष्ट पौर तन आपरै, कष्ट गिणै नंह कोय।।
पोथी पढियां पिंड सूं, जड़ता मिटै न जोय।
साबू कपड़ा साफ व्है, हियौ न काबू होय।।
नीर नरां में निरखणौ, तपियै सोव्रन तौर।
वणै तपोवन ज्यूं विमळ, ऊनाळै थळ और।।
जळ खारै सरपां जवां, डारण नहीं डरंत।
वसुधा भोगै वीर वे, कुळ में नाम करंत।।
धवळा कंवळा धोरिया, करै मोरिया केळ।
पंथी विलमीजै परौ, मन कुदरत सूं मेळ।।
हियाफूट हारू हुवै, जंबक डरण अजोध।
सूनी माळां संचरै, (वा) आंटीली थळ ओध।।
कोयल कंठी कांमणी, खीच रंधै कर खांत।
कंत अरोगै कोड सूं, भोगै सुख इण भांत।।
दारू अंतर दपट सूं, थळवट अळगी थेट।
जळ तिरणौ की जांणणौ, भव तिरणौ हरि भेट।।
धौळे दिन दीवा धुबै, उठै घणौ अंधार।
दीवौ थळवट देस रौ, सदा करण सतकार।।
रखी पूठ वित राखणा, एवड़ टोळा ऊंट।
थळियां में रळियां थई, क्रीत वधी चहुंकूंट।।
सागां कूमट सांगरी, काचर फळियां कैर।
हद बूठां रळियां हुवै, लागै थळियां लैर।।
नर तो भूखा नेह रा, तर निरोग धर तेज।
उण थळवट सूं हे अली, हरदम कीजे हेत।।
झुकै कोट जिम झूंपड़ा, वाड़ी वनां विकट्ट।
फाटक ज्यूं फळसो फबै, वा धरती थळवट्ट।।
‘वंक’ कवी मन वंक सूं, कीनी थळ री काट।
‘सगत’ कवी घण स्नेह सूं, वाखांणी थळवाट।।
~~डॉ. शक्तिदान कविया
निर्भीक एवं यथार्थ का चित्रण करने वाले कवीराज सा 1008 स्व, श्री बांकीदास जी आसिया को नमन् वंदन । कवराज सा 26 ग्र॔थो और लगभग 2000 फुटकर रचनाओं के रचयिता है आपकी थळवट बत्तिसी के सामने लगभग 250 वर्ष बाद डा शक्तिदान जी बिराई का लेखन थळवट रा थाट सूरज की दीपक से बराबरी करने का प्रयास भी सराहनीय लगा ।