त्रिकूटबंध गीत – वंश भास्कर

बूंदी के चहुवान राजा उम्मेद सिंह और जयपुर से आई कछवाहा राजा ईश्वरी सिंह की सेना के मध्य हुए युद्ध के वर्णन पर त्रिकूटबंध गीत।
सन्दर्भ: वंश भास्कर

उम्मेद भूपति अंग में,
रसबीर संकुलि रंग मैं,
बरबीर बारह सै प्रबीरन चक्क लै चहुवान।
जयनैर सम्मुह जोर सों,
भिलि खग्ग झारीय भोर सों,
बर गुमर असिबर समर लगि झर
कुनर छरतर हुनर हत कर
जबर खर सर गजर जय धर
अडर भर भिलि कचर-घन कर
अमरपुर मचि दवर दरबर
उदर भर मिलि मुखर पलचर
खचर चय अर खपर खरभर
पहर इक बजि टकर धरपर, घोर इम घमसान।।1।।

कर बाम तोक प्रयाग व्है,
अमरेस दक्खिन भाग व्है,
मरजाद पित्थल अग्ग मंडिय बीच अप्पऽ बाजि।
बिरुदावलि बंदिन बित्थरे,
अतिबेग सम्मुह उप्परे,
बजि कटक दमनक रचक धमचक
अटक दक तक मुलक अकबक
अछक छक भट ललक अतिधक
तुपक चलि हल सलक इकटक
गरक रँग झक फरक बहरक
चमक खुर सुचि झमक चकमक
किलक डक लगि अजक चउचक
पुलक सक कर घमक पसरक, अरक रज ढक आजि।।2।।

अतिमोद जुग्गिनि उल्लसैं,
हर देवि नारद त्यों हसैं,
डर देत लेत डकार डाकिनि प्रेत हेत प्रसार।
कमनैत तीरन तानिकैं,
पखरैत बेधत पानिकैं,
बुधतनय हित जय प्रणय नय बय
छपय रनसुम अभय अतिसय
विषय चय भुव बलय विसमय
प्रलय मय भय समय निरदय
उदय रवि नय निलय अतिरय
अजय खयकर अखय जय अप
अभय सय पय ह्रदय अपचय
कटय स्मय निचय हय गय, मार हीन सुमार।।3।।

तुरगी रचैं कति तेहरी,
किमु अद्रि लंघित केहरी,
फटिमत्थ-भेजन जुत्थ, फैलत नूतन कि नवनीत।
छिकि टोप बाहुल उच्छटैं,
कटि कालि कंकट की कटैं,
भट गरट मिलि थट पुरट छटपट
कुघट घट परि अवट कटकट
कपट तट अति झपट रन अट
उबट बट रट विकट रहचट
पलट नट गति उलट झटपट
उछट खगझट निपट अघ दट
दपट दिय भिलि निकट प्रतिभट
रपट मचि रन प्रकट रजवट, जुरत चाहत जीत।।4।।

~~महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण

Loading

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.