वैर सगतो किनियो लेवैला!!

कविराजा बांकीदासजी वैर भाव नैं ठीक नीं मानियो। उणां सपाट कैयो है कै वैर में तोटो ई तोटो है नफो किणी भांत रो नीं है। वैर रै कारण ई राम नै सिया सूं विछोह भोगणो पड़ियो तो रावण नैं लंका सूं हाथ धोवणो पड़ियो-

वैर मही तोटो वसै, वसै नफो नह वंक।
सियाहरण राघव सह्यो, रांवण पलटी लंक।।

पण राजस्थानी संस्कृति में वैर लेवणो गरब रो विषय अर नीं लेवणो निंदनीय मानीजै। अठै रै लोगां रो मानणो है कै वैर कपूत अर कायर रो रैवै। इणी कारण किणी कवि कैयो कै ‘हे! जणणी जणै तो दो भांत रा पूत जिणजै। एक तो कुल़ रो वैर लेवणियो अर दूजो कुल़ मंडणियो’ —

जणणी जणै कपूत मत, चंगो जोबन खोय।
कै जण वैर विहंडणो, कै कुल़ मंडण होय।।

अठै रा लोग बाप, भाई अथवा कुटंब रो वैर तो लेता ई आया है साथै जे परिवार में वैर लेवणियो पूगत़ो पुरुष नीं होयां सातै पीढी भाई वैर लेय आपरी अर मरणिये री आत्मा नैं तिरपत कर गरव मानता आया है।

ऐड़ो ई एक किस्सो है ‘किनियां री बस्ती’ (किनियां रो गांम, बीकानेर) रो। घणै वरसां पैली किनियां री बस्ती रा चेलोजी किनिया आपरै घोड़े चढिया खेतां सूं गांम कानी जावती बगत आपरो घोड़ो एक नाडियै माथै पावण लागा तो उणां नै अचाणचक एक ओपरी छाया दीसी।

विशालकाय छाया मिनख वाणी में बोली कै ‘चेला तूं लांठो मिनख है भाई ! म्हनै पाणी पा ! वरसां सूं तिस मर रैयो हूं !’

एकर तो चेलेजी रै समझ में नीं आई पण दूजै पल बे समझग्या कै कोई भूता चाल़ो है। चेलोजी बिनां डरियां बोलिया ‘ओ नाडियो थारै आगे पड़ियो, पीवै नीं पाणी। कुण हाथ झालै ?’

‘म्हैं इंयां पाणी नीं पी सकूं, पाणी तो तूं पगां हेठकर फेंकेला जद म्हैं पी सकूंला। ‘ बा छाया बोली।

चेलेजी आपरै धोबां सूं पगां हेठकर पाणी फेंकियो अर उण छाया धापर पीनो।

पाणी पियां पछै बा छाया बोली कै ‘चेला मांग !’

चेलेजी कैयो ‘जा रे लपोल़ थारै कनै है कांई म्हनै देवण नै ?’

उणी आवेश में बा छाया बोली ‘चेला संभल़ बोली ! म्है कोई धानियो-भगानियो नीं हूं जको तूं चावै ज्यां बोल जावै ! म्हारी ई रगां में कदै ई रजपूती रगत बैवतो भाई ! चारण है जणै गई करूं अर कैवूं कै चार पांऊंडा आगे भरर थोड़ी जमी खोद ! जको कीं निकल़ै बिनां संकै घरै लेज्या। ‘

चेलोजी ई संभल़ग्या अर उण छाया कैयो ज्यूं ई कियो। बात बेवै कै उठै चार चरू निकल़िया।

चेलोजी आपरै नाम सूं ‘चेलासर’ कुवो खोदावणो शुरू कियो। चेलेजी रै इण काम सूं पाखती रै गांम ‘मोरखेड़ी’ रा बीठू तिलमिलायग्या। अदावत बधी। मोरखेड़ी में बीठू घणा। उणां चेलेजी नै मार नांखिया। लारलां किनियां तय कियो कै ‘बारियो’ वैर लियां करांला। बे संभर मोरखेड़ी माथै गया पण पार नीं पड़ी। किनिया डरग्या अर डरतां आपरो गांम छोडर आपरै भाईयां रै गांम चारणाई रै सगतै किनिये कनै गाडां गोल़ लेय गया परा। गांमरै गोरवै गाडा छोड दिया। पतो करायो कै सगतो गांम में है कै नीं। ठाह पड़ी कै सगतो गांम में नीं है। निरासा में समय बितावै। एक दिन सगतो गांम आयो। उण देखियो कै गांम रै गोरवै गाडा ऊभा है अर धूंवो नीसरै! कुण होसी ठाह करण रै मिस उण आपरो घोड़ो डेरां कानी टोरियो। पूछिय़ो तो ठाह पड़ियो कै किनियां री बस्ती रा किनिया है। मिनखां रै चींदी बंध्योड़ी अर संवारां बध्योड़ी। उण पूछियो तो किनियां विगतवार पूरी बताई अर कैयो कै म्हांसूं पार नीं पड़ी, तूं ई सातै पीढी भाई है! आस कर र थारै कनै आया हां।

सगतै कैयो ‘थे पांच -सात आदमी तो हा नीं, तोई पार नीं पड़ी! पछै म्हारै सूं कीकर पार पड़ेली?

उणां मांय सूं एक कैयो कै ‘भाई सगता! म्हारी मा कैयो कै हमे लेवैला जणै तो सगतो किनियो लेवैला, नीं जणै हिंयो हेठोकर बैठ जाया। गया जकां रा उणियारा गया। आगे मिनखां रो गारत मत करावजो।

इतरी सुणतां ई सगतै रै झाल़ां उपड़गी। उण कैयो ‘गोल़ अठै ई राखो। वैर लियां ऐढो अठै ई करांला। संभो म्हारै साथै कोई। वैर हूं ऐकलो लेवूंलो।

उणां कैयो नेठाव सूं काम कर र भाई सगतू! बीठू घणा है।

सगतै कैयो थे तो हालो म्हारै साथै, मोत रै आगे कोई नीं ठैरै। सगतो तो मोत है।

हिम्मत बंधियां बाकी दो चार किनिया ई साथै होया। वास्तव में सगतो तो मोत सरूप हो। मोरखेड़ी बड़तां ई आडैकट मार काट मचाय दी। घणा लोग मरिया। बचिया जकै बीठू सगतै रै डर सूं गांम छोडग्या।

आज बीठुवां रो बो मोटो गांम सूनी थेह रै रूप में ओल़खीजै। सफा उजड़ग्यो। सगतै सातै पीढी वैर लेय, चेलोजी रो ऐढो करायो अर किनियां नैं पाछा बसाया। इणी खातर कैताणो चावो है -भाईयां तणी भीड़, भायलां भागै नहीं।

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

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