अमर शबद रा बोकडा
🌺अमर शबद रा बोकडा🌺
अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारै आंगणै, मेहाई महराज॥1
सरस विधा संजीवनी, सीखी सबद खरीह।
पढता जीवित होत है,कविता नहीं मरीह॥2
अमर शबद रा बोकडा, चरै भाव रो घास।
कविता बण प्रकटै सदा, कुण कर सकै विनास॥3
रगत बीज सम वा मरे, पुस्तक करतां बंद।
पढतां अनुभवतां प्रगट, शबद खेलतौ द्वंद्व॥4
शबद तणां इण बोकडा, रो मुश्किल संहार।
छिण बलि चढ छिण वै अमर, आई थारे द्वार॥5
शबदां वाळा बोकडा, अरपूं रोज अपार।
कवियां रा दुःख मेटजै, करजे बेडो पार॥6
अमर शबद रा बोकडा, करजे मां स्वीकार।
इतरो मांगूं मावडी, बगसौ काव्य अपार॥7
शबदां वाळै बोकडै,हरदम होय सवार।
बैठी हिय रे द्वार, मेटण संकट मेलडी॥8