नव नाथ स्तवन
दोहा🌺
सिर घण माळा सोहती, जोगी औ जट धार।
आयौ देवण आसिसा, नरपत रे मन द्वार॥1॥
कंथाधारी कनफटौ, कर ले झोळी भार।
कर ले चिमटौ आवियौ, नरपत रे मन द्वार॥2॥
कानां कुंडळ ओपता, गिरनारी जटधार।
आज आय पावन किया, नरपत मन रा द्वार॥3॥
गिरनारी थारी गुरू, भारी मनै गरज्ज।
मारी इतरी बीणती, नरपत री रख लज्ज॥4॥
गोरख मौ रख बीणती, करतौ नरपत बाळ।
अलख धणी धूणी धखा, मौ मन कलिमल बाळ॥5॥
हँसणो खेलण अर खुशी, मिलण मान मनुहार।
पळ पळ जीवण जीवणौ, गोरख बातां सार॥6॥
अलख निरंजण ओलियौ, नवनाथां नेजाळ।
आयौ मन रे आंगणै, प्रणमै नरपत बाळ॥7॥
🌺छंद त्रिभंगी🌺
जय अलख निरंजण, भव दुःख भंजण, खळ बळ खंडण, जग मंडण।
शंकर अनुरंजण, नित रत जिण मन, प्रणव प्रभंजण, जिम गुंजण।
गुरू देव चिरंतन, आदि अनंतन, सब जग संतन, रूप दता।
नव नाथ निवंता,आणंद वंता,मन मुदितंता, नाचंता॥1॥
जय जय अरिहंता,सिध मुनि संता, गुरू भगवंता, बुधिवंता।
महराज महंता, अलख वदंता, खं विचरंता,खेलंता।
जिण ज्ञान अनंता, घण गुणवंता,रत सद ग्रंथा,सत पंथा।
नव नाथ निवंता, आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥2॥
ओपै मुख ऊजळ, कानां कुंडळ,तेज जळोहळ,झळहळ झळ।
कर पकड कमंडळ, केसी -कंबळ,प्रभु रत पळ पळ, मन निरमळ।
चित मौ अति चंचळ, कलि मल दल दल, कर जिण प्रति पळ, सुभवंता।
नव नाथ निवंता ,आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥3॥
जोगी जटवाळा, गळ घण माळा, राख रमाळा, तन वाळा।
आसण मृगछाला, धुण धखाळा, मस्त निराळा,मनवाळा।
गीरनार हिमाळा,थारा थाळा, जंगळ जाळा, विचरंता।
नव नाथ निवंता, आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥4॥
अहलेक जगावै, जद वा आवै, मन हरसावै, दरसावै।
अठ सिध बगसावै, नव निध लावै, सुख सरसावै, भय जावै।
थिर कीरत थावै, जय जस पावै, गुरु चरणावै, रह्या रता।
नव नाथ निवंता,आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥5॥
मन मस्त मलंगा, सोहम संगा,हर रँग रंगा, तन नंगा।
गांजा अर भंगा, पी इकरंगा, अलख तरंगा, रत गंगा।
जग सूं कर जंगा, अजब अठंगा ,गती तुरंगा, विचरंता।
नव नाथ निवंता, आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥6॥
नित नेह लगा रे, सांझ सकारै, बैठौ बारै, दरगारे।
दिल देय दुआ रे, हाथ पसारै, सरल सदा रे, दुख जारे।
अनहलक पुकारै, सच रखवारै, उण चित धारै, मन मस्ता।
नव नाथ निवंता,आणंद वंता, मन मुदितंता, नाचंता॥7॥
अरजी अलगारी, गुरू गीरनारी, मानौ मारी, मन वारी।
शरणै हुं थारी ,सदा सदा री, अजब उदारी ,चितधारी।
नरपत बलिहारी, वारी वारी, राख हमारी, शुध्ध मता।
नव नाथ निवंता, आणंद वंता,मन मुदितंता, नाचंता॥8॥
🌺कलस छप्पय🌺
जय जय दत गुरुदेव,
नमो नव नाथ निरंजण।
सदा करूं तौ सेव,
चरण रत रहौ सदा मन।
सिध चौरासी संग,
अंग भसमंग अघोरी।
कापालिक जिन संत,
मति चंचळ घण मोरी।
करुणानिधान करुणा करौ,
रखौ रावळी छाय रे।
गुरूवर नमन गरिमामयी,
ग्रह नरपत री बांय रे॥
~~वैतालिक~~