वाणी वरदानी वदां

वाणी वरदानी वदां, आखर दानी आइ।
भाव उपानी भव्यतम, गिरा भवानी माइ॥1
वीण वजंती सरसती, आगै जेण मराल।
धवला सन धवलांबरा, गळ में स्फाटिक माळ॥2
फटिक मालिका फूटरी, फबती जिणरै तन्न।
वीण पांणि हंसासनी,म्हारी बसौ रसन्न॥3
कमल नैणी कमलासणी, पुस्तक धारै पांण।
सुर लय धिणियाणी सदा,करो काव्य रस लाण॥4
भाव ,कथन, उकति , यती, लय , छँद बगसो आइ।
जिणसूं नरपत खुद तथा,पाठक आणंद पाइ॥5
रे मन -नभ- री चारणी,धाबळ धरण धवल्ल।
वंदन वीणा वादणी,बैठौ रसन कमल्ल॥6
कलम खाग झेलाय मौ, कहती थुं”कर वार”।
तद तद नरपत री चलै,कविता – री रसधार॥7
अरथ चमत्कृति ,आपजौ, दगध अखर कर दूर।
रसना पर नित रास रम,रे नवलख री नूर॥8
कवित भाव उकति कथन, सुरसत-मुक्तक-हार।
कविजन मांगौ उण कनै, देसी वा अणपार॥9
उणसूं कांई मांगणौ, है जिणरै दो हाथ।
सब देवै मां शारदा,मन सूं नामौ माथ॥10
बीस भुजी बरदायिनी, नवलख री जो नाथ।
किरपा बा जिणपर करै, सुरसत उण रे साथ॥11
हाथ एक सूं हाकडो,दूजे सूं खळ दाब।
आवड मावड आप तौ, रखियौ मुरधर आब॥12
कविता खुद इक साधना, बीज मंत्र आराध।
आवड आवड उचरतां, मिट गई मन री बाध॥13
कीडी ने कण देय,मण मण दिये मतंग ने।
पशुआं तृण समपेय, अनपुरण सच आवडा॥14
चाळक नेच तणांह, बाळक सब डणकार में।
जोगण जणां जणांह,भाळ राखती भगवती॥15
खड खड रव भुज चूड रो, धड घड घड घड ढोल।
बढ चढ नाचै आवडा, तेमड मढ मन खोल॥16
है मो सिर तौ हाथ,कियां डरुं दुनियांण सूं।
वड आवड समराथ,आप भरोसे आशियो॥17
नरपत नहीं अनाथ,मात हाथ माथे रख्या।
भव रे इण भाराथ,सांची आवड सारथी॥18
सातूं बहनां साथ,मनरंग थळ में म्हालती।
गा उण री गुण गाथ,आवड मावड आसिया॥19
जयदायी जगदंबिका, अभय प्रदायी आइ।
वरदायी विश्वंभरी, मामडीयाई माइ॥20
सचर अचर संचालिका, अवनि पालिका आइ।
जय जग चंडी ज्वालिका, सदा कालिका स्हाइ॥21
चारण तारण चारणी, मारण डारण दैत।
टारण घात उबारणी, आवड आपण हेत॥22
नरपतदान आवडदान आसिया “वैतालिक”