वर्षा ऋतू वर्णन – कवि श्री दुला भाया “काग”

।।दोहा।।
धर हरियो कंचवो धर्यो, माथे श्याम मलीर।
चमकी बीज अशाढीरी, गहके मोर गीर।।१।।
रींछडियुं रमवा चडी, नदी नाळां छलकंत।
पहाड अधोले आढियु, मेखडियुं मलकंत।।२।।
इंद्रधनुष ताण्यां अकळ, गडहड अंबर गाज।
शादुळे शर प्राछटयां, वाज सुणी वनराज।।३।।
।।छंद – सारसी।।
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,
जीय वरळ चमचम वीजळी।।
गडहडिय सज दळ, आभा वळकळ, मंद प्रबळा मलकती,
दीपती खड खड, हसी नवढा, श्याम घुंघट छुपती;
अबळा अकेली, करत केली, व्योम वेली लळवळी,
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,.
जीय वरळ चमचम वीजळी।।१
मद भरी व्रळकी, मेल माजा, गगन तळ सळगी गियां,
जळ भर्यो वादळ, चडयां अणगण, वरुण दळ वीफरी गियां;
पहाडां सिखर पर दिहण प्राछट, सघळ सेना हुकळी,
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,
जीय वरळ चमचम वीजळी।।२
सांकळां भांगी, मोर घनदळ, गगन नीरखी गेकिया,
मळरात काळी, कठठ माजम , पियु टौक्या बापिया;
सुणि भणक काने, कंथ शोधण, नमी धर पर नरमळी,
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,
जीय वरळ चमचम वीजळी।।३
वादळां कळा, जुओ व्रेमंड, सामसामां आफळे,
हमसमे सागर, लोढ हड हड , गगन सुन नोबत गडे
वेरण्या काळा, वरा धर पर, वाळ छूटा वादळी,
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,
जीय वरळ चमचम वीजळी।।३
खेंचिया ईदर- धनख खुल्लां, सप्तरंगी शोभियां;
काना विजोगी राधीकानां, हरण जीं फफडयां हियां;
पचरंग पाने, “काग” पेखी, फूलडे गरवर फळी,.,
आषाढ घमघम धरा धमधम, वरळ चमचम वीजळी,
जीय वरळ चमचम वीजळी।।५
।।छप्पय।।
व्रळकी व्योमे वीज , लजण लडहडती लाडी।
डरती डरती दकाळ, अकळ फरती धन आडी।
मदछद हाकल मेघ , करे अण वखत कडाका।
ऊधे माथे अछत, धरा पर लेत धडाका।
अवकाश सफळ रुध्यो अरक, चडियां दळ पवनां सळी।
आकाशे सगळ उठी, ईद्र मशालु उजली।।
~~कवि श्री दुला भाया “काग”