वठे झबूकै बीजल़ी

।।दोहा।।
आज मँड़ी सावण झड़ी, बड़ी पडी बरसात,
नड़ी नड़ी नाची सखी, खड़ी खड़ी हरखात।।१
बरसे नभ में वादल़ी, घूंघट बरसे नैण।
तरुणी पिव बिन तरसती, सावण घर नीं सैण।।२
वठै झबूकै बीजल़ी, अठै झबूकै नेण।
बरसो घन ह्वै बालमा!, सावण में सुखदेण।।३
बीज पल़क्कै बिरह री, नैण छलक्कै नीर।
रैण ढल़क्कै राज! बिन, धारूं किण विध धीर।।४
दुय नैणां रा दीप नें, नित प्रगटावै रैण।
गोख उड़ीकै गोरड़ी, कद आसी पिव लैण।।५
पिया! जिया रो प्यार थूं, हरे हिया रो द्वंद।
नाम लियां निरभय किया, दिया सदा आणंद।।६
झिल मिल करै झरूखडौ, घूंघट ड्यौढी फांद।
कद दूरौ कद ढूकडौ, मुखडौ टुकडौ चांद।।७
चंपक वरणी कामणी, वरणो कुम कुम वेस।
आनन चंद अनूप है, रैण काजल़ी केस।।८
पिया अषाढी मेहुलो, मौ पर बरसे जोर।
मनड़ौ नाचै मोर ज्यूँ, हिव ले प्रेम हिलोर।।९
घटा घूंघटा में सखी, मेघ छटा दरसंत।
मंद मंद मुसकान री, मेघ झड़ी बरसंत।।१०
सुपन कल्पना और छबी, तीन रूप दरसाय।
सखी नैण री पालखी, पल़ पल़ बैठी आय।।११
कूक अंब कोकिल करे, टूंके मोर टहूक।
हूक उठे हिव में अली!, माधव बिन मन मूक।।१२
कर ओल़ू काल़ी पड़ी, सूखी तन-तरुवेल।
नैण नीर सर सूखिया, आया नी अलबेल।।१३
~~नरपत आसिया “वैतालिक”