वीरता किणी री बपौती नीं हुवै!!

डिंगल़ रा सुविख्यात कवि नाथूसिंहजी महियारिया सटीक ई कह्यो है-
जो करसी जिणरी हुसी, आसी बिन नू़तीह!
आ नह किणरै बापरी, भगती रजपूतीह!!
अर्थात भक्ति अर वीरता किणी री बपौती नीं हुवै, ऐ तो जिको करै कै बखत माथै बतावै उणरी ईज हुवै। इणमें कोई जाति रो कारण नीं है। इण बात नै आपां दशरथ जाम (मेघवाल) री गौरवमयी बलिदान गाथा कै जोगै मेहतर री वंदनीय वीरता कै गोविंद ढोली रै अतोल त्याग कै झोठाराम पन्नू (मेघवाल़) रै बाहुबल़ री बातां रै मध्यनजर समझ सकां।
अमूमन आपां दलित विमर्श री बात करती बखत फगत एकपखीय मींट सूं काम करां अर उणी बातां नै आमजन तक पूगावां जिकी समाज रै एक हिस्से तक नकारात्मक संदेश पूगावै अर उणरै पाण दूजै हिस्से रै पेटै खरास जागै। म्हारो ओ मंतव्य नीं है कै दलितां साथै समर्थ वर्ग अन्याय नीं करियो। निसचै ई कियो पण आ बात ई पूगणी चाहीजै कै उणी समर्थ वर्ग रै केई नर-नारियां दलितां रै पेटै अथाग संवेदनशीलता रै पाण आपरै समाज रो विरोध झालियो पण आपरो मिनखापणो नीं छोडियो। जिण लोगां आपरो मिनखापण कायम राखियो उणां रै प्रति दलित वर्ग री आज ई घणी श्रद्धा है। हुणी ई चाहीजै, क्यूंकै गुणपूजा आपांरै अठै संस्कृति रो आधार थंभ रह्यो है। इणी सारू तो संत रज्जबजी कह्यो है-
जन रज्जब गुणचोर का, भला न होसी नेट।
भस्मासुर भसमी भयो, महादेव गुण मेट।।
मध्यकालीन विख्यात वीर अर पांच पीरां में शुमार पाबू राठौड़ इणी दलित अर पिछड़े वर्ग रै हितां री रुखाल़ी सारू आपरै संबंधियां सूं समर लड़ अमरता नै प्राप्त हुयो।
लधराज मुहता सही ई कह्यो है कै संसार रो ओ खेल चावो है कै सबल़ री पख तो हर कोई चढ जावै पण गरीब-गुरबै री भीर फगत पाबू राठौड ई आवै-
सबल़ तणी पख व्है सदा, खलक तणो ओ खेल।
तैं कीधी धांधल तणा, वीर गरीबां वेल।।
इणीगत बाबा रामदेव आपरी वीणा री झणकार रा सुर जातिय समरसता री सरसता जगावण में गू़जाया।
इणीगत लोकदेवी देवलजी, करनीजी अर जानबाई आद ई दलितां री प्रबल पखधर अर हिमायती रह्यी है।
देवलजी (माड़वा) तो आपरी पैतृक जमीन रा चार हिस्सा कर दिया। तीन आपरै बडै बाप रै बेटां नै अर चौथौ बेघड़ (मेघवाल़) जाति रै आपरै बापरै रै सेवक नै दियो। भाईयां विरोध कियो तो देवलजी कह्यो कै “म्हैं थांरै दांई ईज इणनै ई म्हारो भाई मानूं अर आ पांति म्हैं इणनै देवूंला!!” इणी बेघड़ री संतति जागीरी मर्ज हुयां चौथै हिस्से रो जागीरी मुआवजो लियो। इणां री आज ई देवलजी रै प्रति घणी श्रद्धा है। डॉ शक्तिदानजी कविया लिखै-
सेवक बेघड़ साख रौ, आपी धरा अलेख।
मेघवाल़ कुल़ मावजौ, पायौ सांप्रत पेख।।
इण लोकदेवी री कृपा दीठ जोगू अर कागिया (मेघवाल) तो देथर (मंगणियार) माथै वरदान सरूप रह्यी। डिंगल रा विद्वान अर सांस्कृतिक इतिहास रा अध्येता डॉ शक्तिदानजी कविया लिखै-
जोगू कागिया जातरा, मेघवाल़ घण मान।
देथर मंगिणयार दत्त, देवल रो वरदान।।
इणी गत लोकदेवी जानबाई, दुकाल़ री बखत पाणी रै तोटै सूं परेशान आपरै गांम देरड़ी रै वासियां सारू एक वाव (बावड़ी) बणाई। उणां समूल़ै गांम नै आदेश दियो कै अठै रा सगल़ा वासी म्हारै संतान सरूप है सो बिनां किणी आभड़छोत रै हर कोई पाणी भरो। आ बात उठै रै समर्थ लोगां रै जची नीं अर उणां कह्यो कै “आई मेहतरां नै म्हैं भेल़ो पाणी नीं भरण दां।” आ सुणर जानबाई कह्यो कै “देरड़ी में रैणो है तो बिनां भींट रै पाणी भरणो पड़सी अर छूआछूत करणी है तो थांनै दूजी जागा जाणो पड़सी।” लोग मूंडो पिलकायर रह्यग्या। कवि पिंगल़सी मेघाणंद गढवी लिखै-
भंगी कल़बी बामणां, कोली थोरी केक।
जानल जुदा न जाणती, आरै सरखा एक।।
वा बावड़ी आज ई जानबाई री समदीठ री साखीधर देरड़ी गाम में मौजूद है।
मध्यकाल़ रै वीर चावराज हाडै माथै विरोधियां हमलो कियो। उण री सेना में एक जोगो मेहतर ई हो। जिण बखत हमलो हुयो, चावराज अर उणरै दूजै संगाथियां सूं झपट झली नीं पण जोगै आपरो जोगापणो बतायो अर अदम्य साहस रै साथै विरोधियां सूं भिड़ियो। विरोधी जोगै रै आगै न्हाठ चूका। इण संबंध में रासाजी बारठ लिखै कै छतरीपण (वीरता) री छाप किणरै ई लागोड़ी नीं हुवै वा तो लगावणी पड़ै। ज्यूं जोगै लगाई। कवि लिखै कै जिको हरिजन समाज आपरै जजमानां रो ऐंठो खावतो उणी हरिजन वीर री वीरता सूं चावराज जीतियो अर्थात चावराज ई जोगै री जीत रूपी ऐंठ खाई-
छतरीपण री छाप, किणरी नह लागी कदै।
कीध साच दल़ काप, जगत बखांणै जोगड़ा।।
जड़ियो लोह जंजीर, तूटा आपांणै तकै।
वेल़ा जुध री वीर, जाय भिड़्यो तूं जोगड़ा।।
सह हरजन्न समाज, ऐंठी खाधी अवल ही।
(पण) ऐंठी थारी आज, चाव राव खाई छती।।
मध्यकालीन कवि देवाजी आशिया भील वंशावली लिखी। वै भीलां नै आपरा भाई सदृश मानता। कोई आभड़छोत नीं राखता। देवाजी लिखै कै पारधियां (भील) अर पातां (चारण) रै तो पैलै भव री प्रीत है जदै ई तो चारणां री गायां री रक्षार्थ एक सौ चाल़ीस भीलां वीरगत पाई-
पारधियां नै पातवां, जाणी छै भेलप्प।
वाहर सुरै बढाविया, वीसां सातां वप्प।।
जोधपुर रै राजा उदयसिंह रै अत्याचारां रै खिलाफ वि.सं 1643 में आऊवा री आंटीली धरा माथै चारणां रै प्रसिद्ध धरणै में सगल़ां सूं पैला कटारी खाय आपरा प्राणांत करणियो गोविंद ढोली आज ई चारण समाज में एक नायक रै रूप आदरीजै-
मूवो सारां मोर’
दाद ढोली नै दीजै।।
इण सगल़ी कड़ियां रै आगीवाण नायक रै रूप में दसरथ मेघवाल आपरी निकेवल़ी ओल़खाण राखै। दसरथ करनीजी री गायां रो गुवाल़ो अर उणां रो प्रिय सेवक हो। जद काल़ू पेथड़ अर सूजा मोयल (दोनो राजपूत) करनीजी री गायां रो हरण कर लियो। करनीजी उण बखत पूगल़ राव शेखा री मदत मुल़ताण ग्योड़ा हा। किंवदंती है कै करनीजी शेखाजी भाटी री मदत करी अर उणां नै संवल़ी रो रूप धारर विरोधियां री जेल़ सूं छोडार लाया-
लूंब गल़ै अंग लारलै, देख मती कर देर।
बैन रमावै बंधवां, ल़घू पीठ पर लैर।।
(बगतावरजी मोतीसर)
लारै सूं इण दोनां आतताइयां गायां रो हरण कर लियो। उण बखत गायां में दशरथ मेघवाल़ गवाल़ा हा। ज्यूं ई सूजै अर काल़ू आय गायां रो हरण कियो त्यूं ई दसरथ उणां नै ललकारिया। इनै राजपूत ! उठिनै मेघवाल़!! पण वीरता किणरी ई मोहताज नीं हुवै। उणां वां गौ चोरां नै ललकारिया ! अर अदम्य साहस रै साथै उणां सूं जा भिड़्यो। पण आ सही है कै ‘जोधार हारै अर घण जीते!’ आ ई बात दशरथ रै साथै हुई। बो वीर ई आपरी स्वामीभक्ति और वीरता री मिशाल कायम कर वीरगत पायग्यो। आपां रै अठै स्वामीभक्ति नै सबसूं सिरै धरम मानियो है, देवकरणजी बारठ इंदोकली लिख्यो है-
सौ सुकरत इक पालणै, एको सांम धरम्म।
किरता अपणै हाथ सूं, तोलै सबै करम्म।।
गायां री रक्षार्थ जूंझर दसरथ आपरै काम बल़ आपरो नाम अमर करग्यो। कवियां दशरथ री इण वरेण्य वीरता नै आपरी वाणी सूं अमर कर दीनी।
करनीजी नै ज्यूं ई दिव्य शक्ति रै पाण गायां रै हरण अर दशरथ रै बलिदान रो ठाह लागो तो उणां आपरै दिव्य गुणां नै प्रदर्शित कर र सांवल़ी रो रूप धारण कर काल़ू पेथड़ नै उणरै गांम गोगोल़ाव पूगण सूं पैला ई मार दियो। जिणरो साखीधर डिंगल़ काव्य है। गोपीनाथजी गाडण लिखै-
वरग छोटड़ियै वाल़ियो, मींच काल़ियो मार।
एक रैण पल एक में, बणी चील दो बार।।
करे साद सांपू गई आज करनी कठै,
चोर गायां लियां जाय चौङै !
कैरङा बापङा घरै राड़ां करै,
देव रावां तणी मदद दौङै !!
दीह इक प्रवाङा साझिया दोवङा,
सिखर घर कीध सुरराय साता !
तया रचरूप ओ ताप सँवऴी तणा,
मारियो काऴियो आय माता !!
इणी बात नै गणेशदानजी रतनू (दासोड़ी) आपरै एक छप्पय में लिखतां दसरथ री बखाणणजोग वीरता नै इण भांत उल्लेखित करी है-
काल़ू पैथड़ क्रूर, सूजियो मोयल सागै।
दूठ देसांणै आय, उरड़ की गायां आगै।
दाटक वो दसरथ्थ, गाढ कर भिड़्यो गवाल़ो।
अवनी जात उजाल़, रह्यो रणखेत रढाल़ो।
सुरराय बात इसड़ी सुणी, धिन तन संवल़ी धारियो।
मलफती पूग असमांण मग, मीच काल़ियो मारियो।।
सूरजमलजी रतनू आपरी एक चिरजा में लिखै-
“धावै अर छीलै बिचै,
मार लीधो दैत नै।”
इण पूरी घटना माथै प्रतापजी देपावत रा लिख्या दूहा ई घणा चावा है।
करनीजी आपरै इण प्रिय सेवक रै बलिदान नै चिरस्थाई बणायो राखण सारू इण वीर रो थान आपरै हाथां थापित करवायो। जिण जोत सूं आज करनीजी री आरती हुवै उणी सूं दसरथ री जोत हुवै।।कवियां लिख्यो है कै साच माथै अडग रैवणियै दसरथ रो तो तैं थान थपायो अर अन्याय माथै उतरणियै काल़ू नै तैं खपायो-
“दशरथ थान थपायो,
पैथड़ आचरणी!!”
(सोहनदानजी रातड़िया)
करनीजी रै मंदिर परिसर में थापित ओ थान आज ई दसरथ रै अदम्य साहस अर करनजी री उदात्त मानसिकता रो परिचायक है।
इणी गत बीकानेर महाराजा अनोपसिंह रा भाई महाराज पदमसिंह रै साथै दिल्ली में सींथल़ रा सिंढायच मदजी ई हा। मदजी रै साथै उणां रो मेघवाल़ झोठाराम ई साथै हा। उठै राठौड़ां रै डेरे में ओरंगजेब रै एक इक्के (पहलवान) आय घोषणा करी कै कोई म्हारै सूं मल्ल भिड़ै!! नींतर अपणै आप नै मल्ल मानणियो म्हारी टांग नीचैकर निकल़ै। पदमसिंहजी रै सारू तो उण मल्ल नै पटकणो कै पछाड़णो डावै हाथ रो काम हो पण उणां आपरै आदम्यां रो तुमार जोवण सारू उवां कानी जोयो। किणी री हिम्मत नीं हुई। सेवट मदजी, झोठाराम कानी जोयो। झोटाराम ई समझग्या कै मदजी कांई चावै!! उणां मदजी नै कह्यो कै बखड़ी लड़णो तो म्हनै आवै नीं पण जे ओ मल्ल पंजो लड़ावतो हुवै तो इणनै खबर घालू!! मदजी बात महाराज नै बताई कै इण मल्ल रो पंजो झोठै सूं लड़ावो। महाराज रै आदेश सूं उण मल्ल अर झोठाराम पंजो लड़ायो। झोठाराम में इतरी ताकत ही कै उणां एक ई झटकै सूं उण मल्ल रो हाथ बाहूड़ै मांय सूं काढ दियो। महाराज झोठाराम माथै अणूता राजी हुया अर कह्यो कै “झोठा मांग!”
झोठाराम कह्यो “हुकम म्हारी सींथल में सिंढायचां (चारणां री एक शाखा) रै साथै गवर निकल़णी चाहीजै!!”
पदमसिंह जी कह्यो “भल़ै की!!”
“बस हुकम गवर निकल़णी चाहीजै!!”
पदमसिंहजी कह्यो “निकल़सी।”
आपां जाणां कै उण बखत आ बात दलित जाति सारू कितरी गुमेज री ही। सींथल में सिंढायचां री गवर रै साथै बिनां किणी भेदभाव रै मेघवाल़ा री गवर निकल़ती जिकी परंपरा आज ई निभाईजै।
ऐ कतिपय उदाहरण देवण रो म्हारो फगत ओ ईज ध्येय है कै आपां एक पखीय दीठ राखर किणी बात नै नीं लिखां बल्कि आपां इण बात री दीठ नै ई राखां कै उण महामनीषियां जिण विपरीत परिस्थितियां में दलित हित चिंतन री बात डंकै री चोट करी जिणां री करणी अर कथणी में कोई खोट नीं हो वांरो ई इण पेटै फूल सारू पांखड़ी रै अवदान नै चितारियो जावै।
आज जरूरत इण बात री है कै सामाजिक समरसता थापित करण वाल़ी बातां री युवा पीढी नै पूरसल जाणकारी मिलणी चाहीजै।
विस्तार भय सूं ज्यादा नीं लिखर इतो ई लिखणो समीचीन समझूं कै वीर भोम राजस्थान माथै दलित कोम में ई मोकल़ा वीर हुया है!! जरूत है उणां रै चारू चरित्र री चंद्रिका चमकावण सारू निरपेख दीठ री।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान, दासोड़ी, बीकानेर