वाह भड सांदू वाह!

सोशीयल मीडीया रा दातार: नीतिराज सिह सांदू

जननी जण तो संत जण, के दाता के सूर।
नीतर रहिजै बाँझणी, मती गमाजै नूर।।

लोक साहित री अमोलख मंजुषा रे मांय औ दूहौ हीरा माणक लाल जिसो किमती है अर भारतीय संस्कृति री आगवी विशेषता रो परिचायक है। प्राचीन जुग में उण जननी रो नाम सबसूं सिरै हो जिकण री कुख सूं संत, दाता अर सूरमा रो जनम बेवतो। दातारी री वातां अर ख्यातां राजस्थान री लोक संस्कृति में आज ई अनवरत गूंजै। कठेई आज ई आपां गांव रे पडवै, कोटडी, पोळ में बडेरां री बातां सुणां तो केई प्राचीन दूहा गीत सूं भरियौडा प्रसंग सुणण में आवै जिण में दातारी रा प्रसंग हिरदा में अणूंतो रोमांच जगा जावै। सांगा गौड अर “हरिरस” रा रचयिता इसरदास बारठ रो परसंग “कांबळी रो कोल” घणौ चावौ अर ठावौ। गुजरात रा लूंठा लोकसाहित रा कलमकार आदरजोग झवेरचंद मेघाणी आप री पोथी “सौराष्ट्र री रसधार” में आ बात विस्तार सूं मांडी है। जिण में सांगौ गौड नाम रो गरीब राजपूत मरियां पछै ई आप रो कांबळ देवण रो कोल पूरौ करै। अर बारठ ईसरदास जी सांगा गौड सूं कांबळी रो दान लेयर फेरूं बाने नवजीवन बगसण रे सागै सागै वां ने आपां री भगति रे बळ सूं जीवित ई करै बा ने कविता कर अमरत्व बगसावै।

पूरी बात किं इण तरै है।

“हरिरस” अर “देवियाण” रा रचयिता बारहठ इसरदासजी द्वारका री जातरा करवा जाता हा जद मारग में रातवासौ करण रे वासते किणी राजपूत रो घर पुछण चावै है अर गांव रे गुंदरै बैठोडा मसखरा मिनख उणा नें सांगा गौड रा घर भळायर मजाक कर दे की सांगौ गौड नागरचाळा गांव रो ठाकर बाजै तो आप ने रातवासौ करण देसी।

बारठ जी सांगा गौड रे घर पुगै जद बां ने ठा पडै के सांगा गौड री गरीबी रो उपहास उडावण सारू ईज बां ने गुंदरै बैठोडा लोग सांगा रे पाडै भेजिया। रातवासा रे बाद सुबै सुबै जद सीख देवण री वेळ हुवै तद सांगौ गौड बारहठ जी ने केवै के “आप म्हारै घरे पधारिया अर म्हूं आपने सीख रे रूप में कंबल भेट करणी चावूं हुं पण इण री कोर बुनण री बाकी है सो आप द्वारका सूं पाछा आयर म्हारी आ तुच्छ सीख स्वीकार करजो” ईसरदास जी द्वारका जावा व्हीर हुवै।

इण बीच करुणांतिका औ घटित हुवै के सांगौ जद गायां चरावा जाय तो मेह री झडी मंडीजै अर बा आप रे गायां अर टोगडां रे सागै बाढ में बह जावै। नदी रे मांय तणाता तणातां वा आपरा साथीयों ने सांगो केवे के “कहजो मोरी माय, कवि ने दीजो कांबळी

बारठ जी जद द्वारका सूं पाछा फरै जद बा सांगा रे घर कांबळी रो दान लेवण सारू आवै। सांगा गौड री डोकरी मां कवि ने कंबळ देणी चावै पण कवि जिद करै के सांगा रे हाथ सूं ईज कांबळी रो दान ग्रहण करैला। डोकरी री हिम्मत टूट जावै अर रोवती थकी बा बारठ जी ने बतावै के सांगौ नदी रे पाणी रे बहाव में घणी बिरखा रे चलतां तणाय गियौ। कवि उणी जगै माथै जाय सांगा ने साद देवै जठै सांगो तणायो हो अर कांबळी रो कौल याद कर दूहा बोलै जद सांगौ नदी सूं पाछौ आवै अर कवि नें आपां रा खुद रा हाथ सूं कांबळी रो दान देवै।

सांगा गौड री दातारी रो औ दूहौ घणौ चावौ है।

दीधारी देवळ चढै, मत कोई रीस करेह।
नागरचाळा ठाकरां, सांगौ गौड सिरैह।।

किणी कवि ठीक ई केयौ है के

दाता ने कवि को दिया, कवि गया सो खाय।
कवि नें दाता को दिया, जातां जूगां न जाय।।

शाह अब्दुल लतीफ भीटाई आप री लोक प्रसिद्ध कृति शाह जू दों रिसालों में दातारी रा एक लूंठा प्रसंग री बात करै। पाटण रो राजा राव दुर्लभसेन जूनागढ रो घेरो घाले अर उणने जीतण में सफल नी हुवै जद एक जंतर वीणा वादक जिण रो नाम बीजल चारण हो बां नें रा डियास रो माथौ ले आवण रो काम भळावै। बीजल नें आपरा जंतर वादन पर इतरो गुमेज हो के बा औ बात स्वीकार लेवै के वा जंतर रा आपरा सुर सूं किणी रो माथौ पण दान में मांग सके। शरत लागतां बीजल जुनागढ रे किल्लै में वळै अर रा डियास रे आगै बीजल चारण जंतर रा एडा सम्मोहक सुर छेडै के रा डियास आप रे दरबार में आयोडा चारण बीजल ने परसन होय दान मांगण री बात करै जद बीजल दान में रा डियास रो माथौ मांग लेवै। अर रा डियास खुशी खुशी आप रो मस्तक काट नें बीजल ने धर देवै।

महाराणा परताप जेडै स्वाभिमानी जुग पुरूष नें जो भामाशा जेडा दानी रो सहारो नी मिळतौ तो? भामासा री दातारी नें पण आपां नी भुलणी चाइजै जिका मेवाड रो माथौ गरब सूं अनमी राखण में आपा री मेहताउ भूमिका अदा करी।

आज रे भौतिकता वादी जुग में ई राजस्थान री इण पावन धरा रे मांय दान री परंपरा री अनवरत गंगा चालू है। जो आदू समै री गंगोत्री सूं कल कल करै है। इण रो परिचय सोशियल मीडिया रे मांय अबार ई थोडा दिन प्हैली वियोडी एक घटना है जिकण औ सिद्ध कर दियौ के आदू पुराणी दान अर दातारी री बातां कोइ दंतकथा या महज किस्सा कहाणी नी हा पण बे चीजां आखर आखर साच ही।

NitirajSanduआज मैं बात मांडणी चावूं हूं एक निजानंदी कवि अर घोडां रा सौदागर नीतिराज सिंह सांदू सिहु री जिकण घोडी रो दान एक गुणी कवि मीठे खांजी मीर नें देयर पुराणी दान री परिपाटी नें पुनर्जिवीत करण री कोशिश करी।

राजा रजवाडों री टेम में घोडा, हाथी, उंट, लाख पसाव, क्रोड पसाव रा दान सम्मान सूं साहितकारां कवियों री नवाजिश विया करती ही। उदयपुर महाराणा भीम सिंह कवि महादान महेडू सिरस्या मेवाड ने घोडी रो दान दियौ। महाराणा रे दान में दियोडी घोडी रो कवि महादान जी महेडू काव्य मय वर्णन कर एक प्रसिद्ध दूहौ अर सपाखरौ गीत डिंगळ में लिखियौ हो।

उर चौडी दौडी उडै, डीघोडी मृगडांण।
गजमोडी तोडी गढां, दीघोडी दीवांण।।

एकर डिंगळ री डणकार में घोड़ों री जात अर गुण बावत बातां छिडी जद मीठाखां जी मीर डभाल महज हास परिहास सारू कह्यो के आज बा आ जानकारी ली तौ बै घोड़ा तो नी मूलाय सकै पण किणी जगा सूं टट्टू जरूर खरीदैला अर चर्चा रे सागै सागै दोहां सोरठा रो दौर चालियो।

जिणमैं शुरूआत करतां थकां महेन्द्रसिंहजी नरावत सरवड़ी दोहो लिख्यो कि

मीठा टट्टू मोलावियां, हुवै सदा ही हांण।।
लाभ लैण नें लावजै, कच्छ भुज रो केकांण।।

ओ दूहो सुणतां झट पड़ूतर रे रूप में मीठा खां जी कहियो के,

पियौ नहीं है पास मैं, (जद) किंम लावूं कैकांण।।
दातार मों दीसै नह, मन सागर महरांण।।
महेन्द्र बतावो महपति, जो होवै गुण जाण।।
जाचै उणनें जायनें, कवि लावै कैकांण।।

ऐ दोहा ग्रुप में पढतां पांण नीतिराजसिंहजी सांदू शीव (नागौर) फरमायो कि

मन मुरझा नह मीठिया, जबरो जाचक जांण।।
सीख दिरावां सांतरी, करां भेंट कैकांण।।

जद जगदीशजी कविया दोहो केवतां थकां भळामण करी के,

मालाणी मोलावजो, कद काठी कैकांण।।
मरदां हन्दी मोकळी, खरै गुणां री खाण।।

अर महेन्द्रसिंहजी नरावत ने अरज करतां थकां म्हें कह्यो कि,

रह्वै टट्टू राख में, ओ खर जात रो खैल।।
लध्यो तो हेमर लावसूं, पात धरी मन पैल।।

जद ओ सघळो वार्तालाप सुणतां थकां श्रीमान शम्भूसिंहजी चौहान बावरला फरमायो कि

गाम धणी घर धणी हुआ, रह्यो न हाथां राज।।
(पण) जाचक खाली जावतां, लोपै कुळ री लाज।।

इण प्रकार दोहां री रमझोळ में सांदू सा घोड़ा रे दान री बात करी जद सब जांणियो के रात रा ग्यारह बजियां रो समय हो अर इण वखत लौक नशें मैं हुय सकें।

पण पछै सबनें ठा पडी के दुजै दिन सुबह नौ बजियां नीतिराजसिंहजी मीठा खां जी मीर ने फोन कर पूछियौ के बा साचांई घोडी रो दान देवणौ चावै।

Niti Raj Ji Donating Ghodi to Mitha Mir
मीठे खांजी रे शबदां में “उण समै म्हें कह्यो कि हुकम रात रै टैम री बात माथै कम ईज भरोसो किया जाय सकें तद आप फरमाया कि अबै ओ समय कैड़ो हैं तद म्हेे कह्यो कि हुकम सुबह सवा पोर दिन चढै जठा तक राजा कर्ण रो समय कैवीजै। जद आप कह्यो कि इण प्रभात रे समै म्हें कैवूं हूं कि म्हें आपने घोड़ो दिरावूंला जद म्हारैं हरख रो पार नी रह्यो कि आज भी ऐहड़ा दानवीर विद्यमान हैं जिका सिर्फ वाट्सऐप ग्रुप माथै बातचीत रे दौरान घोड़े रे दान री घोषणा कर सकें। उणीज वखत म्हें ग्रुप में मैसेज भैज दियो कि सांदू साहब री तरफ सूं इण नाचीज ने घोड़ो दान में दिरीज्यो जद चौपासनी निवासी मोहनसिंहजी रतनू डी वाय एस पी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जयपुर ओ फरमाया कि,

सांदू सैंधव समापियो, मीर रह्यो मुसकाय।।
भेजो फोटू भिड़ज रो, लै मत बात लुकाय।।”

ओ दोहो पढतां रे पांण सांदू सा आपरे घुड़साल में बांध्योड़े बछैरे रो फोटू भेजीयो अर कहयो कि ओ घोड़ो मीठाखां रे दान में। फैरूं एक दिन आपरो फौन आयो अर कह्यो कि घोड़ो ले जावणो जद आय ले जावो नीतर म्हारे मन री इच्छा एक बढिया फूटरी बछेरी ल्हाय अर दैवण री हैं जे थोड़ा दीन रूक जावो जद तो ठीक नीतर बछैरो ले जावो। जद म्हें अरज करी कि हुकम आ तो सौने में सुहागा वाळी बात हैं सा बछेरी दिरावो जद तो आ ठांण करसी अर म्हारे घर री हालत भी सुधरेला तो सांदू साहब आपरो वचन निभावतां थकां थोड़े समय बाद घोड़ी नयी खरीद अर दान कर आपरै दरियादिली रो परिचय इण जनतंत्र शासन में देय लोकां ने अचम्भित करिया। जद मीठै खां जी मीर आप रा अंतस सूं नीतिराज सांदू री दातारी नें बिरदावतां थकां औ कविता लिखी जिका आप सगळां पाठकां रे वासते सादर प्रस्तुत है।

।।नीतिराजसिंहजी सांदू रो जस्स।।

MitheKhaanMir
दीधी घोड़ी दान री, गढवी राखण गल्ल।।
नीतो मन रीतो नहीं, ऊंची धाख अवल्ल।।१।।
फाबै घोड़ी फूटरी, डील दिसन्ती डांण।।
मन राजी कर मीठियो, विध विध करै वखांण।।२।।
नीता थारै नैह रो, सांदू नावै छैह।।
जसलोभी इण जगत में, कोडे दान करैह।।३।।
तुरी दियण कैशव तणो, सांदू गुणी सिरैह।।
मन हरखावै मीठियो, किरती खूब करैह।।४।।
सांदू दिनीह सांतरी, घण मूंगी घोड़ीह।।
कुरंग रे जिम कूदती, दीसै भल दौड़ीह।।५।।
उर चौड़ी घण ओपती, कुरंग जिसी कैकांण।।
समपी घोड़ी सांतरी, रिझयां सांदू रांण।।६।।
दी लाखैणी दान में, जस राखण भल जोय।।
नीता थारी नामना, हरदम चहुदिश होय।।७।।
दियो हुकम दैसांणपत, मात स्वपन रे मांय।।
सांदू समपर सांतरो, भिड़ज असो मन भाय।।८।।
हुकम मेहासधु हुवतां, जरा करी नह जैज।।
सांदू थारै सजस रो, तप वधै बहो तैज।।९।।
भूल्या नर वंका भुपति, दैवण हयवर दान।।
सांदू बढायो चाव कर, मीठा हन्दो मान।।१०।।
नखत्रधारी नीतिराज रै, परगळ माया पास।।
जसनामी दाता जबर, ईळ म्ह करण उजास।।११।।
पींगळ गुण जांणण पढण, चंगी कविता चाह।।
अश्व हैत कर आपियो, वाह भड़ सांदू वाह।।१२।।
धिन्न दाता धिन्न दुथियां, धिन्न सुरां सवियांण।।
धिन्न भूमि धिन्न भूपतां, रंग धिन सांदू रांण।।१३।।

।।गीत प्रहास शाणौर।।
वन्दन कर अरज करूं मां वाढाळी, डाढाळी उकत सध आप दीजौ।।
भजाळी आवजो भीर कर भवानी, करनल्ला मात तो महर कीजो।।१।।
वसुधा तणें सर कैशुअत वंकड़ो, नखत्रधारी असो नीतैश नामी।।
रीत राघव मैष रामा री राखणो, कळू मैं दातार सिरै शुभ कामी।।२।।
वाह वरदाई नीतेश लेऊं वारणा, तारणा कवियां द्ये भला ताजी।।
प्रगळ असोह दातार मन मोट पण, वजाळा सजस री हाक वाजी।।३।।
फाळ मंकड़ा ज्सूं भरन्तो फूटरी, बाज ज्यूं बहन्तो भरै बाथां।।
समापण सांदू सपतास सारखो, हुंपाहरो ऐहड़ो पमंग हाथां।।४।।
कमर टुंकै गाळां कूकड़ा कंध रो, छेड़यां लगांमां आड सांधै।।
चड़न्तां वेहे विमांनां सारखो, कुरंग ज्यूं कूदतो जाड कांधै।।५।।
दियो हैमर असो खींमहर दान रो, कवि ने किरती सजस काजै।।
वडाई करण सूं चुकै नहीं वंकड़ो, लसै तो गोविन्द रो ब्रद लाजै।।६।।
प्रवाड़ो बहपुर महाभड़ प्रतापी, उजळ वरण राखणो रीत आदू।।
दान रो वरीसण चावो दनियाव में, शिवगढ सरावै नीतैश सांदू।।७।।
सतन कैशव तणो दातारां शिरोमण, लागेयो किरती जस्स लौभे।।
हथां भारी हैं सदा खींवराजहर, सांदू भड़ इळा दातार शौभे।।८।।
प्रतापी जसनांमी हुंपा रे पोतरै, रामाहरै सजस अखियात राखी।।
अजुवाऩे इळा म्ह ब्रद कुळ आपरो, सुरज मयंक इतिहास साखी।।९।।
रांमो लड़यो संग राण प्रताप रे, ध्रुजावण अरियां हतो तपधारी।।
पाक्यो उण कुळ म्ह नीतैश प्रतापी, भलपण राखणो हथां भारी।।१०।।
वना औळख मान वधारण विदंगा, वडम जसनांमी दातार वंको।।
सूंमां संताप हुवै जस्स सांभळै, डणीयण मैं वाजयो सजस डंको।।११।।
वीत प्रगळ माया आवड़ा वधारै, आप तणो कबहू नह थाग आवै।।
धिन्न हो धिन्न सांदू धणियाप ने, गुणी मीठो मीर जसवास गावै।।१२।।
~~मीठा मीर डभाल

~~नरपत आवडदान आसिया “वैतालिक”
गांधीनगर, गुजरात,
कानाबाती:+९१९९२५११९९४२

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2 comments

  • KRISHANPAL singh CHAMPAWAT

    Bahut jordar nityeraj SA
    I like it

  • नरेंद्र सिंह आढ़ा

    प्रस्तुतीकरण बहुत ही प्रभावी बन पड़ा है और घटना को जिस तरह प्रस्तुत किया गया है उस से यूँ लगता है कि जैसे सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा हो ।
    नितिराज सा ने घणा रंग और मीठे खा री लेखणी ने भी दाद ।नरपत सा इण पूरी घटना ने इण तरह सूं पिरोवन वास्ते आप ने भी बहुत रंग ।अंत में अगर आप इण संपूर्ण घटित पर आप रो एक दूहो फरमावता तो और आंनद आ जावतो ।
    शिखर कलश री कमी अखरे है हुकुम ।

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