वाह रे! अमरा वाह!!

राजस्थान रै इतियास में दो अमरसिंह घणा चावा है। एक अमरसिंह कल्याणमलोत अर दूजा अमरसिंह गजसिंहोत। दोनूं ई राठौड़ अर आपरी आखड़ी पाल़ण रै सारू आज ई अमर है।

अमरसिंह गजसिहोत तो घणो चावो नाम है पण अमरसिंह कल्याणमलोत नै कमती ई लोग जाणै। जदकै ऐ अमरसिंह किणी मायनै में कम नीं हा।

राव कल्याणमल बीकानेर रा सपूत अर महाराजा रायसिंह रा अनुज अमरसिंह स्वाभिमान रो सेहरो अर गुमेज रो गाडो हा। आपरै भाई रै साथै अकबर रै दरबार में उपस्थित हा। मुगल पातसाह अकबर अरगीज्योड़ै राजपूतां पेटै कोई हल़को आखर परोटियो। दरबार में विरोध करण री किणी बीजै री हिम्मत नीं होई जाणै गाडर रै कानै माथै जूती राखी होवै पण ओ वीर अगराज उठियो अर बिनां पातसाह री रजा दरबार छोड घोड़ै जीण कस बारोटियो होयो।

पातसाह, जाणै हो कै इणगत दरबार छोड उठणियो सोरै सास नीं मानैलो सो उणनै सर कियो जावै। आ सोच उण आपरै खास मर्जीदान आरबखां नै बुलायो अर कैयो कै-
“आरबखां! अजेज अमरै रै लारै घोड़ा दाब अर जीवतै नै कान पकड़ र म्हारै साम्हो हाजर कर!!”

उण बखत उठै पृथ्वीराज ई बैठा हा। आ सुण उणां पातसाह नै अरज करी कै-
“अमरू, आपसूं बेमुखो हुवो सो सजा रो हकदार है पण म्हारो भाई है सो हूं जाणूं कै जिणगत सिंह री थाहर में ग्योड़ो स्याल़ियो साजो नीं आवै उणीगत कोई पण जावो बो जीवतो नीं आवै। सो आप उणनै जांगल़धर जावण दो! क्यूं किणी जोगतै आदमी नै मरावो हो!!”

आ सुण पातसाह कैयो कै-इण आरबखां नै जाणै है तूं! ओ ग्यो अर ओ आयो। थांरै भाई नै तो इयां ले आवैला जियां कोई बल़ध नै गल़ाणियो घाल लावै।”
आ कैय पातसाह आरबखां नै बहीर कियो।

अठीनै पातसाह चढियो अर उठीनै पृथ्वीराज अमरसिंह नै कासीद मेलियो कै इणगत पातसाह थारै लारै सेना मेली है सो जीवतो पकड़ीजै मती। घाव घालणियै नै मारर मरजै। कासीद हासी-हिंसार अर भिंयाणी रै बिचाल़ै आए गांम हारणी-खेड़ा में भेल़ो हुयो।

अठै आवतां अमरसिंह रो अमल उतरग्यो सो उणां साथ नै आदेश दियो कै आज डेरा अठै ई करांला। आ सुण साथलां अरज करी कै-
“हुकम ! इण गांम रो नाम हारणी-खेड़ा है! अठै जको ई राजपूत लड़ियो वो हारियो सो आपां डेरा आगलै गांम में करांला!! आ सुण अमरसिंह कैयो-जावो रे गादड़ा! पछै उण रजपूतां में अर आपां में फरक कांई रैवैलो? आप हार सूं डरां कै हार आपां सूं डरै!! कांई गात अमर रैवैला कै बात-

जस रहियो अखियात जुगो-जुग,
वात रहे, नह गात रहै।

आपां डेरा अठै ई करांला!!”

जितै भल़ै किणी अरज करी कै हुकम-“कासीद समाचार लायो है कै पातसाह आपरी सेना आपनै पकड़ण मेलदी है!!”
आ सुण अमरसिंह री भृकुटियां तणगी। उणां कैयो-जावो रै कमदिलां ! अमरसिंह रो लूण खाय काल़जै डर पाल़ो ! तो, थे आ चावो कै लोग बातां करै कै अमरै हारण रै डर सूं हारणी-खेड़ै डेरो नीं कियो। अब अठै ई डेरो होवैलो।”

अमरसिंह डेरो उठै ई दियो। कसूंबो गल़ियो। कवियां अमल मीठो कियो-

हो रावां हो राजियां, हो सोहड़ भल्लांह।
सूरां सापुरसां तणी, जुग रहसी गल्लांह।।
रजपूती चढती रती, सदा दुहेली जोय।
ज्यूं-ज्यूं छड़जै सेलड़ां, त्यूं-त्यूं ऊजल़ होय।।
खत्री मंडण दोय गुण, रण पौरस धर चाव।
हारां डोरां कांकणां, मंडीजै महिल़ाव।।

अमरसिंह अमल लियो। आडटेड करी। उणां रै नेम हो कै जे कोई पण उणांनै काची नींद में जगा देतो तो वे उण रो माथो बाढ देता। जोग ऐड़ो बणियो कै आरबखां आय अमरसिंह रो डेरो घेरियो। धण्यां बिन धन सूनो। खल़बल़ी मचगी कै हमे अमरसिंह नै जगावै कुण?

अमरसिंह रै पदमां सांदवण, जिकी माला सांदू री बैन हा अर किणी बात माथै अखंड कौमार्य रो पण ले राख्यो। वांनै अमरसिंह आपरी मा जाई बैन सूं बत्ती मानता। पदमां उठै डेरै में ई साथै हा। राणियां आय अरज करी कै-
“बाईसा! अबै आप टाल़ इण नाग नै कोई नीं जगा सकै! अर नीं जगाया तो पातसाह सूतां नै पकड़ मंगावैला! तो पिढ्यां रै कलंक लागसी। अबै निकलंक कीरत राखणी फखत आपरै हाथ!!”

पदमां जाय आपरी ओजस्वी वाणी सूं डिंगल़ रो डमरू डणकारियो-
कै हे अमरसिंह तैं सदा पातसाह रै सहरां में तडी मचाई, पण थारी कमाई में ओ कैड़ो कुजोग बणियो है कै तूं निचींत सूतो है अर आरबखां री फौज आयगी। हे राव जैतसी नै उजाल़णिया उणरा कुल़ भूषण ! अजै ई जाग अर खाग झाल–

सहर लूंटतौ सदा करतो सरद,
कहर नर पड़ी थारी कमाई।
उज्यागर झाल खग जैत रा आभरण,
अमर अकबर तणी फौज आई!!”

अमरसिंह रै कानां भणकार पड़ी अर झिझकर उठिया। उठतां ई खाग री मूठ हाथ दियो तो साम्ही ऊभी पदमां नै देखी तो रीस उणीगत बैठगी जिणगत उफणतै दूध में पाणी रा छांटा पड़िया होवै। पदमां नै पूछियो-
“तो बाई !फौज आई!!”
पदमां कैयो “जणै ई म्है तनै जगायो नींतर नाग रै मूंडै आंगल़ी कुण दे !!”

अमरसिंह आपरै हाथां सारै राजपूतां नै कसूंबै री मनवार कर सरबरा करी अर घोड़ा आरबखां रै साम्ही खड़िया। रीस में भाभड़ाभूत अमरसिंह रै घोड़ै आरबखां रै हाथी री सूंड सूम दिया। लारै सूं किणी तरवार बाही सो अमरसिंह कमर रै बीचोबीच कटिया पण वाह रे! रजपूत ऊपरली आधी धड़ इतै बेग सूं उछल़ी जिको हाथी रै होदै बैठै आरबखां रै ओझर कटारी बाय आंतड़ा बारै काढ दिया।

अमरसिंह वीरगति वरी तो आरबखां ई मोत रै मूंडै पूगो।

अमरसिंह नै मरतै नै देख एक कासीद पातसाह नै समाचार जाय दिया कै अमरसिंह इणगत काम आयो।

पातसाह पृथ्वीराज नै बुलाया अर कैयो कै-“पीथा थांरो भाई इणगत मराणो! अबै शोग कर पाणी दे !!’

आ सुण पृथ्वीराज कैयो कै-“जहांपनाह म्हारै भाई नै मारणियो कुशल़ै नीं रैय सकै ! म्हारो भाई एकलो सुरग नीं जावै, घाव घालणियै री गुदी झाल साथै ले जावैला ओ म्हनै म्हारै भाई रो पतियारो है!! पछै वीरां री मोत तो हरख देवण वाल़ी होवै शोग कारक नीं!!”

जितै दूजै हलकारै आय कैयो कै-“हुकम इणगत उछलर अमरै आरबखां रा आंतड़ा काढ न्हाखियां!!”

आ सुण पातसाह कैयो-“अरे भाई पीथा थारो भाई तो उडणो शेर हो, बडो हिंदू मरद हो ! तैं कैयी सो थारै भाई कर बताई!!”

इणी वीरता रै पाण तो किणी कवि कैयो है कै-

कुंवर सिनान करै किरमाल़ां,
कुंवरी झाल़ां न्हांण करै!!”

पदमां सांदवण अमरसिंह रा मरसिया कैया जिणां में अमरसिंह री अतोल वीरता री साख है-

आरब मार्यो अमरसी, वड हत्थै वरियांम।
हठ कर खेड़ै हारणी, कमधज आयो कांम।।
कमर कटै उडकै कमंध, भमर हुएली भार।
आरब हण होदै अमर, समर बजाई सार।।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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