welcome -2000

साहिर लुधियानवी मेरे पसंदीदा शायर है। उनकी एक रचना की एक पंक्ति को आधार बनाकर मैंने भी एक नज्म लिखी थी। welcome 2000 इक्कीसवी सदी के स्वागत हेतु। साहिर की पंक्ति थी – “आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते” उस पंक्ति के बाद की कल्पना मेरी है।

🌺welcome -2000🌺

आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते,
क्योंकि हमारा कल ही आने वाला आज है।
हर आने वाला लमहा जो सपनों में पला हो,
ऐसे हसींन पल का निराला अंदाज है।
आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते।

और आई है जो ये घडी कितनी हसीन है,
बदला है साल, ओ सदी पुरे हजार साल,
गांधी, रविन्द्र तोल्सतोय, चार्ली की आइनस्टाइन,
ऐसे भी कहाँ कर सके इस लम्है को सलाम।
तेरा है शुक्रिया अय खुदा सौ-हजार बार,
तेरी रहम ये लमहा नजर से सका निहार,
ऐसा हसीन पल कहाँ आता है बार बार,
ऐसे हसीन पल को दूं बेख्वाब क्यूं गुजार,
आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते।

देखें वो ख्वाब ईद दिवाली गले मिले,
कोई भी ना करे यहां कब भी किसी पे वार।
देखें हसीन ख्वाब हर आँचल में हो दुलार।
देखें हसीन ख्वाब के हर सम्त दिखे प्यार।
आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते,
ऐसा हसीन पल न यूं बेख्वाब गुजारें।

~~©नरपत आशिया”वैतालिक”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.