यादों की सोनापरी
पलकों में उमडा सखी, यादों का सैलाब।
लगी बरसनें आंख फिर, भीगे सारे ख्वाब॥1
(पलकां सजनी आवियौ, यादों रो सैलाब।
आंख हुई सावण झडी, भिंज्यां सारा ख्वाब॥1)
यादों की सोनापरी, आ बैठौ मन मांय।
सखी तुम्हारे वासते, जाजम रखी बिछाय॥2
(यादों री सोनापरी, आव बैठ मन मांय।
सजनी थारै वासतै, जाजम दई बिछाय॥2)
यादों के मन में खिले, सुंदर सेमल फूल।
देख देख खुश होत में, बिना गंध क्या मूल?॥3
(यादों रा मन – लागिया, सुंदर सेमल फूल।
देख देख खुस होवतौ,बिना गंध बेमूल॥3)
जब भी तेरी याद की, जलती है कंदील।
तब मन परवाना वहां, उड पहुचै सो मील॥4
(जद जद थारी याद री,जळी दीप री ज्वाल।
तद उड मन कीटक वठै, आवै उणने भाळ॥4)
रे ठकुराइन याद की,ठोकर मुझै न मार।
ठाकुर बनना ना मुझै, चाकर रखलै यार॥5
(रे ठकरांणी याद री, ठोकर मनैं न मार।
ठाकर बणणौ है नही, चाकर करदै थार॥5)
चौखट तेरी चूमतै ,ही होता मदहोश।
रे यादों की अप्सरा, कह मेरा क्या दोस॥6
(चौखट थारी चूमतां, हुयौ सखी मदहोस।
रे यादौ री अप्सरा, मनै मती दे दोस॥6)
सखी याद के देस मैं, बड पीपल की छांव।
सावन के झूलै लगै,झूल आज कर चाव॥7
(सखी याद रे देसडै, बड पीपळ री छांव।
सावण हींडौ घालियौ, आव अठै थुं आव॥7)
आंखो से ओझल हुआ,जबसे तेरा रूप।
उस दिन से यादें बनी, सखी श्रावणी धूप॥8
(आंख्यां सूं अळगौ हुऔ, सखी जदै तो रूप।
उण दिन सूं यादां तणी, खिली सावणी धूप॥8)
पहलै चौखट चूमकर, फिर पकडूंगा पांव।
सुनलै बुढ़िया याद की,आऊंगा जब गाँव॥9
(प्हैली चौखट चूमसां,पछै पकडसां पांव।
रे यादों री डोकरी,पूगंतां तौ गांव॥9)
सुन यादों की षोडसी, वादों की तू झूठ।
बुलवायै आती नहीं, नयन बंद चहूंकूंट॥10
(सुण यादों री सोडसी, वादों री थुं झूठ।
बोलायां बोलै नही, पलक मूंदतां पूठ॥10)
~नरपतदान आवडदान आसिया “वैतालिक”