यशोश्वरी माँ का कवित्त

।।दोहा।।
सुमन माल़िका गल़ सजा, दुष्ट गाल़िका दाव।
ताप टाल़िका भगत रा, भाल़ कालिका भाव।।
।।कवित्त।।
दुष्टन संहार कर संतन रुखार कर,
साद आद समै हूं से कष्ट सब टाल़िका।
भक्तन के भाव भाल़ जग के जंजाल जाल़,
प्रसन्न प्रसून आ पहन कंठ माल़िका।
यश को विस्तार देय कुयश को गार देय,
यशोश्वरी मेरी मात भाव दास भाल़िका।
चंडिका तुम्हारी आभ झंडी ओ सिंदूरी वर्ण,
कीरती अक्षुण्ण रहे शूल़पांणि काल़िका।।
बंग में उमंग वेश करके सुरंग रहें,
जीत दैत्य जंग में उतुंग शूल खोबती।
ढाका में पताका तेरी साक्षी यश हाका भरै,
कोलकाता माता तूं तो थान थान ओपती।
जेते हैं उपासी तेरे सुखराशी ऐते हूं की,
याते हैं नचिंत सब पक्ष आप शोभती।
माँ यशोश्वरी हमारी रोर दुख कापवारी,
आरी सवारी सिंह गाज वाट फाबती।।
सिर केशराशि काली बदन की छवि काली,
रवि से निराली उजियाली तेरी सुनी है।
शत्रु पर घात काली परी जहां रात काली,
देय ताली हंसी तहां बसी चैन दुनी है।
कोलकाता काली राजै थांन मतवाली मैया,
टाली वेर काली ताके साद भीर बनी है।
ऐरी मात सुनके हमारी सारी बात काली,
अक्षर उजाली देत मनु टेर मनी है।।
शंकर की वाम तूं अवाम की रक्षक सदा,
अमाम नाम तेरो है सचेरो भय नासिका।
बंग हूं के गांम-गांम बिना सबै तामझाम,
धाम धाम रटै तोनै विघन विनासिका।
भए अष्टयाम ताके सकल सुकाम सारे,
थाम लेत आके पाण भीर वाणी भासिका।
यशोश्वरी सलाम सांझ-शाम दास गीध को
तोड़िए तमाम फंद मातु मो उपासी का।।
कियो अट्टहास तबै दैत्यन में त्रास भयो,
देवन में हास भो विसास भो समाज में।
मयंद दहाड़न सों पहाड़न गूंज भई,
भई है भोताड़ तबै सबेही अकाज में।
मंडी जबै राड़ तो अरिन को पछाड़ दई,
गाढ़ दई जीत झंडी चंडी सबै काज में।
कालिका सदा ही दास पालिका विरद तेरो,
बालक निचिंत अरे मातु तेरे राज में।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”